________________
अपभ्रंश महाकाव्य
बह सच्चा है । फलतः बन्धुदत्त दण्डित होता है और भविष्यदत्त अपने माता-पिता और पत्नी के साथ राजसम्मान पूर्वक सुख से जीवन व्यतीत करता है । राजा भविष्यदत्त को राज्य का उत्तराधिकारी बना अपनी पुत्री सुमित्रा से उसके विवाह का वचन देता है ।
९७
इसी बीच पोदनपुर का राजा गजपुर के राजा के पास दूत भेजता है और कहलबाता है कि अपनी पुत्री और भविष्यदत्त की पत्नी को दे दो या युद्ध करो । राजा उसे अस्वीकार करता है और परिणामतः युद्ध होता है । भविष्यदत्त की सहायता और वीरता से राजा विजयी होता है । भविष्यदत्त की वीरता से प्रभावित हो राजा भविष्यदत्त को युवराज घोषित कर देता है, अपनी पुत्री सुमित्रा के साथ उसका विवाह भी कर देता है, भविष्यदत्त सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगता है ।
कथा के तृतीय खण्ड में भविष्यदत्त की प्रथम पत्नी के हृदय में अपनी जन्मभूमि मैनाक द्वीप को देखने की इच्छा जागृत होती है । भविष्यदत्त, उसके माता-पिता • बर सुमित्रा सब द्वीप में जाते हैं । वहाँ उन्हें एक जैन भिक्षु मिलता है जो उन्हें सदाचार के नियमों का उपदेश देता है । कालान्तर में वे सब घर लौटते है । वहाँ विमल• बुद्धि नामक एक मुनि आते हैं। भविष्यदत्त को अनेक उपदेश देकर उसके पूर्वजन्म की कथा सुनाते हैं । भविष्यदत्त अपने पुत्र पर राज्यभार सौंप कर विरक्त हो जाता है । वह जंगल में जाता है और उसकी पत्नियाँ तथा माता भी उसके साथ तपस्या में लीन हो जाती हैं । अनशन द्वारा प्राण त्यागकर वह फिर उच्च जन्म धारण करता है और अन्त में निर्वाण को प्राप्त करता है। श्रुत पंचमी के माहात्म्य के स्मरण के साथ कथा समाप्त होती हैं ।
भी घटना- वैचित्र्य उच्च कोटि क सकती थी । घटना - बाहुल्य होते हुए
इस ग्रन्थ में घटना - बाहुल्य के होते हुए नहीं । घटनाओं से एक उपन्यास की रचना हो भी ग्रन्थ में अनेक काव्यानुरूप सुन्दर स्थल हैं ।
इस काव्य में कवि ने लौकिक आख्यान के द्वारा श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य प्रदर्शित किया है । कथा के आरम्भ में इसी व्रत की महत्ता की ओर निर्देश है ( भ० क० १. १. १-२ ) और समाप्ति भी इसी व्रत के स्मरण से होती है । कथा में भविष्यदत्त को यक्ष की अलौकिक सहायता का निर्देश है। धार्मिक विश्वास के साथ अलौकिक घटनाओं का सम्बन्ध भारतीय विचार-धारा में पुरातन काल से ही चला आ रहा है। कथा में गृहस्थ जीवन का स्वाभाविक चित्र है । बहु विवाह से उत्पन्न मनिष्ट की ओर कवि ने संकेत किया है । भविष्यदत्त अपनी सौतेली माता और सौतेले भाई से सताया जाकर भी अपनी धर्मनिष्ठ भावना के कारण अन्त में सुखी होता है। कथा में यथार्थ और आदर्श दोनों का समुचित मिश्रण है ।
कथानक में कवि ने साधु और असाधु प्रवृत्ति वाले दो वर्गों के व्यक्तियों का चरित्र चित्रित किया है । भविष्यदत्त और बन्धुदत्त, कमला और सरूपा दो विरोधी प्रवृत्तियों के पुरुष और स्त्रियों के जोड़े हैं। उनका कवि ने स्वाभाविक चित्रण किया