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अपभ्रंश-साहित्य
भविसयत्त अपने सौतेले भाई बन्धुदत्त से दो वार धोखा खाकर कष्ट सहता है किन्तु अन्त में उसे जीवन में सफलता मिलती है ।
२. कुरुराज और तक्षशिलाराज में युद्ध होता है । भविसयत्त भी उसमें मुख्य भाग लेता है और अन्त में विजयी होता है ।
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३. भविसयत्त के तथा उसके साथियों के पूर्वजन्म और भविष्य जन्म का वर्णन । विद्वानों और दुर्जनों के स्मरण एवं आत्म विनय के साथ कथा का आरम्भ होता है । संक्षेप में कथा इस प्रकार है
कमलश्री था ।
सुन्दरी से दूसरा
गजपुर में धनपाल नामक एक व्यापारी था जिसकी स्त्री का नाम उनके भविष्यदत्त नामक एक पुत्र था । धनपाल सरूपा नामक एक विवाह कर लेता है और परिणामस्वरूप अपनी पहली पत्नी और पुत्र की उपेक्षा करने लगता है । धनपाल और सरूपा के पुत्र का नाम बंधुदत्त रखा जाता है । युवावस्था में पदार्पण करने पर बंधुदत्त व्यापार के लिए कंचनद्वीप निकल पड़ता है । उसके साथ ५०० व्यापारियों को जाते देख भविष्यदत्त भी अपनी माता की अनुमति से, उनके साथ हो लेता है । समुद्र में यात्रा करते हुए दुर्भाग्य से उसकी नौका आँधी से पथभ्रष्ट हो मैनाक द्वीप पर जा लगती है । बंधुदत्त धोखे से भविष्यदत्त को वहीं एक जंगल में छोड़ कर स्वयं अपने साथियों के साथ आगे निकल जाता है । भविष्यदत्त अकेला इधर उधर भटकता हुआ एक उजड़े हुए किन्तु समृद्ध नगर में पहुँचता है । वहीं एक जिन मंदिर में जाकर वह चन्द्रप्रभ जिन की पूजा करता है । उसी उजड़े नगर में वह एक दिव्य सुन्दरी को देखता है । उसी से भविष्यदत्त को पता चलता है कि वह नगर जो कभी अत्यन्त समृद्ध था एक असुर द्वारा नष्ट कर बही असुर वहाँ प्रकट होता है और भविष्यदत्त का करा देता है ।
दिया गया । कालान्तर में उसी सुन्दरी से विवाह
चिरकाल तक पुत्र के न लौटने से कमलश्री उसके कल्याणार्थं श्रुत-पंचमी व्रत FIT अनुष्ठान करती है । उधर भविष्यदत्त भी सपत्नीक प्रभूत सम्पत्ति के साथ घर लौटता है । लौटते हुए उनकी बंधुदत्त से भेंट होती है जो अपने साथियों के साथ यात्रा में असफल हो विपन्न दशा में था । भविष्यदत्त उसका सहर्ष स्वागत करता है । वहाँ से प्रस्थान के समय पूजा के लिए गये हुए भविष्यदत्त को फिर धोखे से वहीं छोड़ कर स्वयं उसकी पत्नी और प्रभूत धनराशि को लेकर साथियों के साथ नौका में सवार हो वहाँ से चल पड़ता है। मार्ग में फिर आँधी से उनकी नौका पथभ्रष्ट हो जाती है और वे सब जैसे तैसे गजपुर पहुँचते हैं । घर पहुँच कर बंधुदत्त भविष्यदत्त की पत्नी को अपनी भावी पत्नी घोषित कर देता है । उनका विवाह निश्चित हो जाता है । कालान्तर में दुःखी भविष्यदत्त भी एक यक्ष की सहायता से गजपुर पहुँचता है । वहाँ पहुँच वह सब वृत्तान्त अपनी माता से कहता है । उधर बन्धुदत्त के विवाह की तैयारियाँ होने लगती हैं और जब विवाह होने ही वाला होता है वह राजदरबार में जाकर बन्धुदत्त के विरुद्ध शिकायत करता है और राजा को विश्वास दिला देता है कि