________________
९५
अपभ्रंश महाकाव्य
सन्धियों में न तो कड़वकों की संख्या निश्चित है और न कड़वकों में चरणों की
संख्या ।
भविसयत्त कहा '
इस ग्रन्थ का लेखक धनपाल धक्कड़ वैश्य वंश में उत्पन्न हुआ था । उसके पिता का नाम माएसर ( मायेश्वर) और माता का नाम धणसिरि ( धनश्री ) था । वैश्य कुल में उत्पन्न होते हुए भी इसे अपनी विद्वत्ता का अभिमान था और इसने बड़े गौरव के साथ अपने आप को सरस्वती पुत्र कहा है ( सरसइ बहुलद्ध महावरेण भ० क० १·४)
डा० याकोब के अनुसार धनपाल १०वीं सदी से पूर्व नहीं माना जा सकता । श्री दलाल और गुणे ने भविसयत्त कहा की भूमिका में यह सिद्ध किया है कि धनपाल
भाषा हेमचन्द्र की अपभ्रंश से प्राचीन है । इसमें शब्द रूपों की विविध रूपता और ब्याकरण की शिथिलता है जो हेमचन्द्र की भाषा में नहीं । हेमचन्द्र ने अपने छन्दोनुशासन मैं अनेक प्रसिद्ध पिंगल शास्त्रज्ञों के साथ स्वयंभू का नाम भी लिया है और हेमचन्द्र ने अनेक स्थल स्वतन्त्र या परिवर्तित रूप से स्वयंभू से लिये हैं ।" भविसयत्त कहा और पउम चरिउ के शब्दों में समानता दिखाते हुए प्रो० भायाणी ने निर्देश किया है कि भविसयत्त कहा के आदिम कड़वकों के निर्माण के समय धनपाल के ध्यान में पउम चरिउ था । इसलिए धनपाल का समय स्वयंभू के बाद और हेमचन्द्र से पूर्व ही किसी काल में अनुमित किया जा सकता है ।
इस महाकाव्य की कथा लौकिक है । इस काव्य को लिखकर कवि ने परम्परागत ख्यातवृत्त नायक पद्धति को तोड़ा । अपभ्रंश में लौकिक नायक की परम्परा का एक प्रकार से सूत्रपात सा किया । इसकी रचना श्रुत पंचमी व्रत का माहात्म्य प्रतिपादन करने के लिए की गई ।
कथा -- इस महाकाव्य की कथा तीन अंगों या खण्डों में विभक्त की जा सकती है, मपि गन्थ में इस प्रकार का कोई विभाग नहीं ।
१. एक व्यापारी के पुत्र भविसयत्त की सम्पत्ति का वर्णन ।
१. श्री दलाल और गुणे द्वारा संपादित, गायकवाड़ ओरियंटल सीरीज़, ग्रंथांक २०,१९२३ ई० में प्रकाशित ।
धक्कड वणि वंसे माएसरहो समुम्भविण
धण सिरि हो वि सुवेण विरइउ सरसइ संभविण । भ० क० १.९
३. स्वयंभु एंड हेमचन्द्र - एच. सी. भायाणी, भारतीय
विद्या, (अंग्रेजी) भाग
२.
८, अंक ८ - १०, १९४७, पृ० २०२-२०६ ।
४. दि पउम चरिउ एंड दि भविसयत्त कहा -- प्रो० भायाणी भारतीय विद्या (अंग्रेजी) भाग ८, अंक १-२, १९४७, पृ० ४८-५० ।