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अपभ्रंश महाकाव्य को लेकर उपमेय के भिन्न-भिन्न अंगों और उपमान के भिन्न-भिन्न रूपों का साम्य प्रदर्शित करते हुए दो वस्तुओं का अलग-अलग पूर्ण चित्र उपस्थित किया है । इस प्रकार का साम्य कभी श्लिष्ट शब्दो द्वारा, कभी उपमेय और उपमानगत साधारण धर्म बारा और कभी उपमेय और उपमानगत क्रियाओं द्वारा अभिव्यक्त किया गया है।
उदाहरण के लिए निम्नलिखित उद्धरण में कवि ने गंगा नदी और नारी सुलोचना का साम्य प्रदर्शित किया है
घम चालिय पुणु दिण्ण पयाण पसर सुर सरि जल मज्म ठाणु । मोयवि गंगहि सारसहं जुयलु जोयइ कंतहि थणकलस जुयलु । जोयवि गंगहि सुललिय तरंग जोयइ कंतहि तिवली तरंग। जोयवि गंगहि आवत्तभवंणु जोयइ कंतहि वरणाहि रमणु। जोयवि गंगहि पप्फुल्ल कमलु जोयइ कंतहि पिउ वयणकमलु । जोइवि गंगहि वियरंत मच्छ जोयइ कंतहि चलदीहरच्छ। नोइ वि गंगहि मोत्तियहु पंति जोया कंतहि सियदसण पंति । जोइवि गंगहि मतालिमाल जोयइ [कंतहि धम्मेल्ल पील। भत्ता-णियगेहिणि चम्मह वाहिणि देवि सुलोयण जेही ।
मंदाइणि जग सुह दाइणि दीसइ राएं तेही॥ २९. ७. मन्तिम पत्ता में कवि ने गृहिणी को काम-नदी कह कर उसमें अत्यधिक प्रेम रस की व्यंजना भी कर दी है। नदी और सेना की तुलना करता हुआ कवि कहता है। सरि छज्जइ उग्गय पंकयहिं बलु छज्जइ चित्त छत्त सयहिं । सरि छज्जइ हंसहिं जलयरहिं बल छज्जइ धवलहिं चामरहिं । सरि छज्जइ संचरत ससहिं बल छज्जइ करवालहिं ससहि । सरि छज्जइ धक्कहिं संगयहिं बलु छज्जइ रह चक्कहिं गयहिं । सरि छज्जइ सर तरंग भरहिं बलु छज्जइ चल तुरंगवरहिं । सरि छज्जइ कोलिय जल करिहिं बल छज्जइ चल्लिय मयकरिहिं । सरि छज्जइ बहुमाणुसहिं बल छज्जइ किंकर माणुसहिं । सरि छज्जइ सयडहिं सोहियहिं बलु छज्जइ सयडहिं वाहियहिं। पत्ता-जिह जलवाहिणिय तिह महिवइवाहिणि सोहइ।
१५. १२. ५-१३ इसी प्रकार के वर्णन सूर्यास्त वर्णन (१३.८), पर्वत और रिसह का साम्य (३७.१९), वन और सीता का यौवन (७२.२) इत्यादि अनेक स्थलों पर मिलते हैं। ___ इस प्रकार के वर्णनों से स्पष्ट है कि जिस प्रकार अपभ्रंश कवियों ने अनेक छन्दों का निर्माण किया' इसी प्रकार उन्होंने अनेक अलंकरणों की भी सृष्टि की। अपभ्रंश
१. देखिये अन्तिम भध्याय--अपभ्रंश साहित्य का हिन्दी पर प्रभाव ।