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अपभ्रंश - साहित्य
मैं छन्द शास्त्र के ग्रन्थ होने के कारण ऐसे छन्दों के विषय में प्रकाश पड़ा किन्तु अलंकार विषयक कदाचित् कोई ग्रन्थ न होने के कारण इस प्रकार के अलंकारों का नामकरण भी न हो सका । यद्यपि हिन्दी के वीर काव्यों में भी इस प्रकार के वर्णन मिलते हैं ।' लेखक का विश्वास है कि इस प्रकार के अन्य अलंकार भी अपभ्रंश ग्रन्थों में मिल सकते हैं । यदि साहित्यिकों को रुचिकर हो तो इस विशेष अलंकार को safe रूपक कह सकते हैं ।
भाषा -- ग्रन्थ की भाषा में वाग्धाराओं, लोकोक्तियों और सुन्दर सुभाषितों का प्रयोग किया गया है
“भुवक छणयंदहु सारमेउ" १. ८. ७ पूर्णिमा चन्द्र पर कुत्ता भौंके उसका क्या बिगाड़ेगा ? "उट्ठाविउ सुत्तउ सी हु केण” १२.१७. ६ सो सिंह को किस ने जगाया ?
"माण भंगु वर मरण ण जोविउ "
अपमानित होने पर जीवित रहने से मृत्यु भली । " को तं पुसइ णिडालइ लिहियउ" मस्तक में लिखे को कौन पोंछ सकता है ?
"भरियड पुणु रित्तउ होइ राय"
भरा खाली होगा ।
लूयांसुतें वज्र मसउ ण हटिय णिरुज्झइ ।
१६. २१.८
२४. ८. ८
१. देखिये वही ।
३९. ८.५
३१. १०.९
मकड़ी के जाल सूत्र से मच्छर तो बाँधा जा सकता है हाथी नहीं रोका जा
सकता ।
जो गोवा गाइ उ पालइ सो जीवंतु दुखु ण णिहालइ । जो मालारु वेल्लि णउ पोसइ सो सुफुल्लु फलु केंव लहेसइ ॥
५१.२. १
जो ग्वाला गौ नहीं पालेगा वह जीवन में दूध कहाँ से देखेगा ? जो मालाकार तादि का पोषण नहीं करेगा वह सुन्दर फल फूल कैसे प्राप्त कर सकेगा ?
अणुरणनात्मक अथवा ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग अपभ्रंश कवियों की विशेषता है । महापुराण भी इस प्रकार के शब्दों से खाली नहीं ।
as as ass uss रंजइ हरि तरु कडयडइ फुडइ विहडइ गिरि ।
१४. ९.७