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________________ अपभ्रंश महाकाव्य दृश्य भी रख दिये हैं जो ग्लानि या उद्वेग उत्पन्न करते हैं और जिनका प्रयोग खटकता है। ____सन्ध्या वर्णन के प्रसंग में सागर तल पर फैली लालिमा के विषय में कवि कहता है-- "णं दिण सिरि णारिहि तणउ गम्भु" ४. १५.९ अर्थात् मानो दिवसश्रीनारी का गर्भ गिरा हो। इसी प्रकार सूर्य के लिए भिन्नभिन्न उपमानों का प्रयोग करता हुआ कवि एक स्थान पर कहता है ___"णं दिसि णिसियरि मुह मास गासु" । मानो दिशा रूपी निशाचरी के मुख में मांस का ग्रास हो। इसी प्रकार गंगा का वर्णन करते हुए कवि ने जहाँ अनेक उपमानों का प्रयोग कर गंगा के सौन्दर्य की व्यंजना की है वहाँ गंगा को वल्मीक से सवेग निकलती हुई जहरीली श्वेत नागिनी कह कर हृदय को भयभीत कर यिया हैणिग्गय णय बम्मीयहु सवेय विसपउर णाइ णाइणि सुसेय । १२. ६. १० अलंकार योजना-कवि ने अपनी भाषा को भिन्न-भिन्न अलंकारों से अलंकृत किया है । शब्दालंकारों में यमक, श्लेष, अनुप्रास और अर्थालंकारों में उपमा, व्यतिरेक, विरोधाभास, भ्रान्तिमान्, अपह नुति, अनन्वय आदि अलंकारों के प्रचुर उदाहरण मिलते हैं। उपमा अलंकार में बाण के समान, शब्द साम्य के आधार पर दो वस्तुओं में साम्य प्रदर्शन भी मिलता है । यथा"सुर भवणु व रंभाइ पसाहिउ उज्झाउ व सुयम सहि सोहिउ" ९.१४. ६ वन का वर्णन करता हुआ कवि करता है कि वन सुरभवन के समान रंभा-कदली वृक्ष-से अलंकृत था। उपाध्याय के समान सुय सत्य अर्थात् श्रुतशास्त्र शिष्यों-शुक सार्थ से अलंकृत था। कुछ अन्य अलंकारों के उदाहरण नीचे दिये जाते हैंअनन्वय हवें विक्कमेण गोत्तै बलेण णय जुयतें। तुझ समाण तुहं कि अण्णे माणुस मेत्तें ॥ १५. ७. १७-१८ यमक उववणई विविहवच्छं कियाइं गोउलइं धवलवच्छं कियाई। जहिं मंडव दक्खाहल वहति घरि घरि करिसणयहं हल वहति । ३९. १. ८-९
SR No.006235
Book TitleApbhramsa Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarivansh Kochad
PublisherBhartiya Sahitya Mandir
Publication Year
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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