________________
अपभ्रंश-महाकाव्य बाली, शैवाल रूपी नील चंचल नेत्र वाली, तटस्थित वृक्षों से पतित मधु रूपी कुंकुम से पिंम वर्ण वाली, चंचल जलतरंग रूपी कलिवाली, श्वेत बहते हुए झाग रूपी वस्त्र बाली, पवनोद्धत शुभ्र तुषार रूपी हार वाली गंगा शोभित होती है। ___कवि ने २. १३ में पावस का वर्णन किया है। कवि पावस के नाद और वर्णजन्य प्रभाव से अधिक प्रभावित हुआ है। पावस का वर्णन आँखों में कालिमा और कानों में गर्जन उपस्थित करता है। विष और कालिंदी के समान कृष्ण मेघों से अन्तरिक्ष व्याप्त हो गया है । गज गंडस्थल से उड़ाए मत्त भ्रमरसमूह के समान काले-काले गदल चारों ओर छा रहे हैं। निरन्तर वर्षा धारा से भूतल भर गया है। विद्युत् के गिरने के भयंकर शब्द से धुलोक और पृथ्वीलोक का अन्तराल भर गया है। नाचते हुए मत्त मयूरों के कलरव से कानन व्याप्त है। गिरि नदी के गुहा-प्रवेश से उत्पन्न सर-सर माद से भयभीत वानर चिल्ला रहे हैं। आकाश इन्द्र धनुष से अलंकृत मेघ रूपी हस्तियों से घिर गया है। बिलों में जलधारा प्रवेश से सर्प क्रुद्ध हो उठे हैं। पी पी पुकारता हुआ पपीहा जलबिन्दु याचना करता है । सरोवरों के तटों पर हंस पंक्ति कोलाहल करने लगी । चंपक, चूत, चंदन, चिचिणी आदि वृक्षों में प्राण स्फुरित हो उठा।
शब्द योजना से एक प्रकार की ऐसी ध्वनि निकलती सी प्रतीत होती है कि बादलों के अनवरत शब्द से आकाश दिन और रात भरा हुआ है और रह रह कर बिजली की चमक दिखाई दे जाती है । वर्षा की भयंकरता और प्रचंडता का शब्दों में
१. विस कालिंदि कालणव जलहर पिहिय णहंतरालओ।
घुय गय गंड मंडलड्डाविय चल मत्तालिमेलओ। अविरल मुसल सरिस थिर धारा वरिस भरंत भूयलो।
पडु तडि वउण पडिय वियडायल रंजिय सीह दारुणो। णच्चिय मत्त मोर गल कलरव पूरिय सयल काणणो। गिरि सरि दरि सरंत सरसर भय वाणर मुक्कणीसगो।
घण चिक्खल्ल खोल्ल खणि खेइय हरिण सिलिंब कयवहो।
सुरवइ चाप तोरणालंकिय घणकरि भरिय णह हरो। विवर मुहोयरंत जल पवहारोसिय सविस विसहरो। पिय पिय पियलवंत बप्पोहय मग्गिय तोय बिंदुओ। सरतीवल्ललंत हंसावलि झुणि हल बोल संजुओ। चंपय चूय चार चव चंदण चिचिणि पीणियाउ सो।
म० पु०२-१३.