SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. शिक्षापाठ ३६ अनानुपूर्वि. पिता-आवी जातनां कोष्टकथी भरेलुं एक नानुं पुस्तक छे. ते तें जोयुं छे ? पुत्र-हा पिताजी. पिता-एमां आडा अवळा अंक मूक्या छे, तेनुं कांइ. पण कारण तारा समजवामां छे ? पुत्र-नहि पिताजी. मारा समजवामां नथी माटे आप ते कारण कहो. पिता-पुत्र ! प्रत्यक्ष छे के मन ए एक बहु चंचळ चीज छे, जेने एकाग्र करवु बहु बहु विकट छे. ते ज्यां सुधी एकाग्र थतुं नथी त्यां सुधी आत्ममलिनता जती नथी. पापना विचारो घटता नथी. ए एकाग्रता माटे बार प्रतिज्ञादिक अनेक महान साधनो भगवाने कह्यां छे. मननी एकाग्रताथी महा योगनी श्रेणिए चढवा माटे अने तेने केटलाक प्रकारची निर्मळ करवा माटे सत्पुरुषोए आ एक साधनरूप कोष्टकावलि करी छे. पंचपरमेष्टि मंत्रना पांच
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy