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हंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय अने साधु, एने नमस्कार करवानो जे मंत्र ते परमेष्टि मंत्री अने पांच परमेष्टिने साथे नमस्कार होवाथी पंचपरमेष्टिमंत्र एवो शब्द थेयो. आ मंत्र अनादिसिद्ध मनाय छे, कारण पंचपरमेष्टि अनादिसिद्ध छे. एटले ए पांचे पात्रो आद्यरुप नथी प्रवाहथी अनादि छे, अने तेनो जपनार पण अनादिसिद्ध एथी ए जाप पण अनादिसिद्ध ठरे छ.
प्रश्न-ए पंचपरमेष्टिमंत्र परिपूर्ण जाणवाथी मनुष्य उत्तम गतिने पामे छे एम सत्पुरुषो कहे छे ए माटे तमारुं शुं मत छे ?
उत्तर-ए कहे, न्यायपूर्वक छे, एम हुं मानुं ... प्रश्न-एने कयां कारणथी न्यायपूर्वक कही शकाय ?
उत्तर-हा. ए तमने हुं समजावू. मननी निग्रहता अर्थे एक तो सर्वोत्तम जगत्भूषणना सत्य गुणतुं ए चितवन छे. तत्वथी जोतां वळी अर्हतस्वरुप, सिद्धस्वरुप, आचार्यस्वरुप, उपाध्याय स्वरुप अने साधुस्वरुप एनो विवेकथी विचार करवानुं पण ए सूचवन छे; कारण के तेओ पूनवा योग्य शाथी छे ? एम विचारतां एओनां स्वरुप, गुण इ० माटे विचार करवानी सत्पुरुषने तो खरी अगत्य छे. हवे कहो के ए मंत्र केटलो कल्याणकारक छ ? __ प्रश्नकार-सत्पुरुषो नमस्कारमंत्रने मोक्षनुं कारण कहे छे. ए
आ व्याख्यानथी हुँ पण मान्य राखुं छ. ___अहंत भगवंत, सिद्ध भगवंत, जाचार्य, उपाध्याय अने साधु एओनो अकेको प्रथमअक्षर लेतां “असिआउसा" एवं महद्भूत वाक्य नीकळे छ जेनुं 'ओं एवू योगबिंदुनु स्वरुप थाय छे माटे आपणे ए मंत्रनो अवश्य करीने विमळ भावथी जाप करवो.