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________________ सुदर्शन शेठ. ४७ करावी शकुं. चंडाळे एम करवानी हा कही. पछी अभयकुमारे चंडाळने श्रेणिकराजा ज्यां सिंहासनपर बेठा हता त्यां लावीने सामो उभो राख्यो, अने सघळी वान राजाने कही बतावी. ए वातनी राजाए हा कही. चंडाळे पछी सामा उभा रही थरथरते पगे श्रेणिकने ते विद्यानो बोध आपवा मांड्यो, पण ते बोध लाग्यो नहि. झडपथी उभा थइ अभयकुमार बोल्याः महाराज ! आपने जो ए विद्या अवश्य शीखवी होय तो सामा आवी उभा रहो, अने एने सिंहासन आपो. राजाऐ विद्या लेवा खातर एम कर्यु तो तत्काल विद्या साध्य थइ. ____ आ वात मात्र बोध लेवाने माटे के. एक चंडाळनो पण विनय कर्या वगर श्रेणिक जेवा राजाने विद्या सिद्ध न थइ, तो तेमांथी तत्व ए ग्रहण करवानुं छे के सद्विद्याने साध्य करवा विनय करवो अवश्यनो छे. आत्मविद्या पामवा निग्रंथगुरुनो जो विनय करीए तो केवु मंगळदायक थाय ! विनय ए उत्तम वशीकरण छे. उतराध्ययनमां भगवाने विनयने धर्मनुं मूळ कही वर्णव्यो छे. गुरुनो, मुनिनो, विद्वाननो, मातापितानो अने पोताथी वडानो विनय करवो ए आपणी उत्तमतानुं कारण छे. शिक्षापाठ ३३ सुदर्शन शेठ. प्राचीनकाळमां शुद्ध एक पत्नीव्रतने पाळनारा असंख्य पुरुषो थइ गया छ एमांथी संकट सही नामांकित थयेलो सुदर्शन नामनो एक सत्पुरुष पण छे. ए धनाढ्य सुंदर मुखमुद्रावाळो कांतिमान अने मध्य वयमा हतो. जे नगरमां ते रहेतो हतो, ते नगरना
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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