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प्रत्याख्यान,
जाणीए छीए के वांसानो मध्य भाग आपणाथी जोइ शकातो नथी, माटे ए भणी आपणे द्रष्टि पण करता नथी; तेम प्रत्याख्यान करवाथी आपणे अमुक वस्तु खवाय के भोगवाय तेम नथी एटले ए भणी आपणुं लक्ष स्वाभाविक जतुं नथी, ए कर्म आववाने आडो कोट थइ पडे छे. प्रत्याख्यान कर्या पछी विस्मृति वगेरे कारणथी कोइ दोष आवी जाय तो तेनां प्रायश्रित निवारण पण महात्माओए कह्यां छे.
प्रत्याख्यानथी एक बीजो पण मोटो लाभ छे ते एके अमुक वस्तुओमांज आपणुं लक्ष रहे छे, बाकी बधी वस्तुओनो त्याग थइ जाय छे. जे जे वस्तु त्याग करी छे ते ते संबंधी पछी विशेष विचार, ग्रह, मूकQ के एवी कंइ उपाधि रहेती नथी. ए वडे मन बहु बहोळताने पामी नियमरुपी सडकमा चाल्युं जाय छे. अश्व जो लगाममां आवी जाय छे, तो पछी गमे तेवो प्रबळ छतां तेने धारेले रस्ते जेम लइ जवाय छे तेम मन ए नियमरुपी लगाममां आववाथी पछी गमे ते शुभ राहमां लइ जवाय छ; अने तेमां वारंवार पर्यटन कराववाथी ते एकाग्र, विचारशील अने विवेकी थाय छे. मननो आनंद शरीरने पण निरोगी करे छे. वळी अभक्ष्य, अनंतकाय, परस्त्रीयादिक नियम कर्याथी पण शरीर निरोगी रही शके छे. मादक पदार्थो मनने अवळे रस्ते दोरे छे, पण प्रत्याख्यानथी मन त्यां जतां अटके छे; एथी ते विमळ थाय छे. .प्रत्याख्यान ए केवी उत्तम नियम पाळवानी प्रतिज्ञा छे ते आ उपरथी तमे समज्या हशो. विशेष सद्गुरु मुखथी अने शास्त्रावलोकनथी समजवा हुं बोध करुं छु.