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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. ए केवू पापर्नु प्रबळ कारण छे. आपणे आ वचन निरंतर लक्षमा राखq के सर्व प्राणीने पोत नो जीव वहालो छे, अने सर्व जीवनी रक्षा करवी ए जेवो एके धर्म नथी. अभयकुमारना भाषणथी श्रेणिक महाराजा संतोषाया. सघळा सामंतो पण बोध पाम्या. तेओए ते दिवसथी मांस खावानी प्रतिज्ञा करी, कारण एक तो ते अभक्ष छे, अने कोइ जीव हणाया विना ते आवतुं नथी ए मोटो अधर्म छे; माटे अभय प्रधाननुं कथन सांभळीने तेओए अभयदानमां लक्ष आप्यु. अभयदान आत्माना परम सुखनुं कारण छे. शिक्षापाठ ३१ प्रत्याख्यान. पच्चखाण नामनो शब्द वारंवार तमारा सांभळवामां आव्यो छे. एनो मूळ शब्द प्रत्याख्यान छे; अने ते अमुक वस्तु भणी चित्त न करवू एवा जे तत्व समजी हेतुपूर्वक नियम करवो तेने बदले वपराय छे. प्रत्याख्यान करवानो हेतु महा उत्तम अने सूक्ष्म छे. प्रत्याख्यान नहि करवाथी गमे ते वस्तु न खाओ के न भोगवो तोपण तेथी संवरपणुं नथी कारण के तत्वरुपे करीने इच्छानुं रंधन कर्यु नथी. रात्रे आपणे भोजन न करता होइए, परंतु तेनो जो प्रत्याख्यानरुपे नियम न कर्यो होय तो ते फळ न आपे; कारण आपणी इच्छा खुल्ली रही. जेम घरनुं बार| उघाडं होय अने श्वानादिक जनावर के मनुष्य चाल्युं आवे तेम इच्छानां द्वार खुल्लां होय तो तेमां कर्म प्रवेश करे छे. एटले के ए भणी आपणा विचार छूटथी जाय छे ते कर्म बंधननुं कारण छे, अने जो प्रत्याख्यान होय तो पछी ए भणी द्रष्टि करवानी इच्छा थती नथी. जेम आपणे
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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