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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं.
मोश्रमाला कुटुंबपरिवार पामे छे, मानप्रतिष्टा तेमन अधिकार पामे छे. अने ते पामवां कंइ दुर्लभ नथी, परंतु खलं धर्मतत्व के तेनी श्रद्धा के तेनो थोडो अंश पण पाम महा दुर्लभ छे. ए रीद्धि इत्यादिक अविवेकथी पाप, कारण भई अनंत दुःखमां लई जाय छे; परंतु आ थोडी श्रद्धाभावना पण उत्तम पदिए पहोंचाडे छे. आम दयानुं सत्परिणाम छे. आपणे धमतत्वयुक्त कूळमां जन्म पाम्या छीए तो हवे जेम बने तेम विमळ दयामय वर्त्तनमा आवद्. वारंवार लक्षमा राखq के सर्व जीवनी रक्षा करवी. बीजाने पण एवोज युक्ति प्रयुक्तिथी बोध आपवं. सर्व जीवनी रक्षा करवा माटे एक बोधदायक उत्तम युक्ति बुदिशाळी अभयकुमारे करी हती ते आवता पाठमां हुं कहुं छु; एम् ज तत्वबोधने माटे यौक्तिकन्यायथी अनार्य जेवा धर्ममतवादीने शिक्षा आपवानो वखत मळे तो आपणे केवा भाग्यशाली ! शिक्षापाठ ३० सर्व जीवनी रक्षा भाग २.
मगध देशनी राजगृही नगरीनो अधिराजा श्रेणिक एक वखते सभा भरीने बेठो हतो. प्रसंगोपात वातचितना प्रसंगमां मांसलुब्ध सामंतो हता ते बोल्या के हमणां मांसनी विशेष सस्ताई छे. आ वात अभयकुमारे सांभळी. ए उपरथी ए हिंसक सामंतोने बोध देवानो तेणे निश्चय कर्यो. सांजे सभा विसर्जन थई अने राजा अंतःपुरमां गया. त्यार पर्छ। कर्त्तव्य माटे जेणे जेणे मांसनी वात उच्चारी हती तेने तेने घेर अभयकुमार गया. जेने घेर जाय त्यां सत्कार कर्या पछी तेओ पूछवा लाग्या के आपनुं परिश्रम लई अमारे घेर केम पधारवू थ छे ? अभयकुमारे कह्यु: महाराजा! श्रेणिकने अकस्मात् महा रोग उत्पन्न थयो छे. वैद्य भेळा करवाथी