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सर्व जीवनी रक्षा भाग १.
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शिक्षापाठ २९ सर्व जीवनी रक्षा भाग १.
दया जेवो एके धर्म नथी. दया एज धर्मनुं स्वरुप छे. ज्यां दया नथी त्यां धर्म नथी. जगतितळमां एवा अनर्थकारक धर्म मतो पड्या छे के जेओ एम कहे छे के जीवने हणतां लेश पाप थतुं नथी; बहु तो मनुष्य देहनी रक्षा करो. तेम ए धर्ममतवाळा झनुनी, मदांध छे अने दयानुं लेश स्वरूप पण जाणता नथी. एओ जो पोतानुं हृदयपट प्रकाशमां मूकीने विचारे तो अवश्य तेमने जणाशे के एक सूक्ष्ममां सूक्ष्म जंतुने हणवामां पण महा पाप छे. जेवो मने मारो आत्मा प्रिय छे तेवो तेने पण तेनो आत्मा प्रिय छे. हुं मारा लेश व्यसन खातर के लाभ खातर एवा असंख्याता जीवोने बेधडक हणुं छं. ए मने केटलुं वधुं अनंत दुःखनुं कारण थइ पडशे ? तेओमां बुद्धिनुं बीज पण नहि होवाथी तेओ आवो सात्विक विचार करी शकता नथी. पापमां ने पापमां निशदिन मग्न छे. वेद, अने वैष्णवादि पंथोमां पण सूक्ष्म दया संबंधी कंइ विचार जोवामां आवतो नथी. तोपण एओ केवळ दयाने नहि समजनार करतां घणा उत्तम छे. स्थूळ जीवोनी रक्षामां ए ठीक समज्या छे, परंतु ए सघळा करतां आपणे केवा भाग्यशाली के ज्यां एक पूष्प पांखडी दूभाय त्यां पाप छे ए खरं तत्व समज्या अने यज्ञयागादिक हिंसाथी तो केवळ विरक्त रह्या छीए ! बनता प्रयत्नथी जीव बचावीए छीए, वळी चाहिने जीव हणवानी आपणी लेश इच्छा नथी. अनंतकाय अभक्षथी बहु करी आपणे विरक्तज छीए. आ काळे ए सघळा पुन्यप्रताप सिद्धार्थ भूपाळना पुत्र महावीरनां कहेलां परमतत्वबोधना योगब थी वध्यो छे. मनुष्यो रीदि पामे छे, सुंदर स्त्री पामे छे. आज्ञांकित पुत्र पामे छे, बहोळो