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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु..
शिक्षापाठ २८ रात्रिभोजन.
अहिंसादिक पंचमहाव्रत जेवु भगवाने रात्रिभोजन त्याग व्रत कडं छे. रात्रिमा जे चार प्रकारना आहार छे ते अभक्षरुप छे. जे जातिनो आहारनो रंग होय छे ते जातिना तमस्काय नामना जीव ते आहारमा उत्पन्न थाय छे. रात्रिभोजनमां ए शिवाय पण अनेक दोष रह्या छे. रात्रे जमनारने रसोइने माटे अग्नि सळगाववो पडे छे, त्यारे समीपनी भीतपर रहेला निरपराधी सूक्ष्म जंतुओ नाश पामे छे. इंधनने माटे आणेलां काष्ठादिकमां रहेला जंतुओ रात्रिये नहि देखावाथी नाश पामे छे; तेमज सर्पना झेरनो, करोळियानी लाळनो अने भच्छरादिक जंतुनो पण भय रहे छे. वखते ए कुटुंबादिकने भयंकर रोगनुं कारण पण थइ पडे छे.
रात्रिभोजननो पुराणादिक मतमां पण सामान्य आचारने खातर त्याग कर्यो छे छतां तेओमां परंपरानी रुढीए करीने रात्रिभोजन पेसी गयुं छे. पण ए निषेधकतो छेज.
शरीरनी अंदर बे प्रकारनां कमळ छे. ते मूर्यना अस्तथी संकोच पामी जाय छे एथी करीने रात्रिभोजनमां मूक्ष्म जीव भक्षणरुप अहित थाय छे जे महा रोगनुं कारण छे. एवो केटलेक स्थळे आयुर्वेदनो पण मत छे. ____ सत्पुरुषो तो दिवस वे घडी रहे त्यारे वाळु करे, अने बे घडी दिवस चढ्यां पहेलां गमे ते जातनो आहार करे नहि. रात्रिभोजनने माटे विशेष विचार मुनिसमागमथी के शास्त्रथी जाणवो. ए संबंधी बहु सूक्ष्म भेदो जाणवा अवश्यना छे.
चारे प्रकारना आहार रात्रिने विषे त्यागवाथी महद्फळ छे. आ जिन वचन छे.