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________________ यत्ना. शिक्षापाठ २७ यत्ना. जेम विवेक ए धर्मनुं मूळतत्व छे, तेम यत्ना ए धर्मनुं उपतत्व छे. विवेकथी धर्म तत्व ग्रहण कराय छे, तथा यत्नाथी ते तत्व शुद्ध राखी शकाय छे अने ते प्रमाणे प्रवर्त्तन करी शकाय छे. पांच समितिरूप यत्नो तो बहु श्रेष्ट छे, परंतु गृहाश्रमीथी ते सर्व भावे पाळी शकाती नथीः छतां जेटला भावांशे पाळी शकाय तेटला भावांशे पण असावधानीथी पाळी शकता नथी. जिनेश्वर भगवंते बांधेली स्थूल अने सूक्ष्म दया प्रत्ये ज्यां बेदरकारी छे, त्यां बहु दोषथी पाळी शकाय छे. ए यत्नानी न्यूनताने लीघे छे. उतावळी अने वेगभरी चाल, पाणी गळी तेनो संखाळो राखवानी अपूर्ण विधि, काष्टादिक इंधनना वगर खंचेयें, जोये उपयोग; अनाजमां रहेला सूक्ष्म जंतुओनी अपूर्ण तपास, पुंज्या प्रामार्ज्या वगर रहेवा दीघेलां वासण, अस्वच्छ राखेला ओरडा, आंगणामां पाणीनुं ढोळवु, एउनुं राखी मूकवुं, पाटला वगर धखधखती थाळी नीचे मूकवी. एथी पोताने आ लोकमां अस्वच्छता, अगवड, अनारोग्यता इत्यादिक फळ रुप थाय छे, अने परलोकमां दुःखदायी महापापनां कारण पण थइ पडे छे, ए माटे थइने कवानो बोध के चालवामां, बेसवामां, उठवामां जमवामां अने बीजा हरेक प्रकारमां यत्नानो उपयोग करवो. एथी द्रव्य अने भावे बने प्रकारे लाभ छे. चाल धीमी अने गंभिर राखवी घर स्वच्छ राखवां, पाणी विधि सहित गळाववुं, काष्टादिक इंधन खंखेरीने नांखवां ए कंइ आपणने अगवड पडतुं काम नथीः तेम तेमां विशेष वखत जतो नथी. एवा नियमो दाखल करी दीया पछी पाळवा मुश्केल नथी. एथी बिचारा असंख्यात निरपराधी जंतुओ बचे छे. प्रत्येक काम यत्नापूर्वकज कर ए विवेकी श्रावकनुं कर्त्तव्य छे. ३९
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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