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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु.
वानी पृथा पडे छे; एथी सुखमां काळ जाय छे. कोण जाणे लक्ष्मी आदिकमां केवीए विचित्रता रही छे के जेम जेम लाभ थतो जाय छे तेम तेम लोभनी वृद्धि थती जाय छे. धर्म संबंधी केटलुक ज्ञान छतां, धर्मनी द्रढता छतां पण परिग्रहना पाशमां पडेलो पुरुष कोइकज छूटी शके छे. वृत्ति एमांज लटकी रहे छे; परंतु ए वृत्ति कोइ काळ सुखदायक के आत्महितैषि थई नथी. जेणे एनी टुंकी मर्यादा करी नहि ते बहोला दुःखना भोगी थया छे.
छ खंड साधी आज्ञा मनावनार राजाधिराज, चक्रवर्ती कहेवाय छे. ए समर्थ चक्रवर्तीमां सुभुम नामे एक चक्रवर्ती थइ गयो छे. एणे छ खंड साधी लीधा एटले चक्रवर्ति-पदथी ते मनायो पण एटलेथी एनी मनोवांच्छा तृप्त न थई। हजु ने तरस्यो रह्यो. एटले घातकी खंडना छ खंड साधवा एणे निश्चय कर्यो. बधा चक्रवर्ती छ खंड साधे छे, अने हुं पण एटलाज साधु तेमां महत्ता शानी? बार खंड साधवाथी चिरंकाळ हुं नामांकित थइश. समर्थ आज्ञा जीवनपर्यंत ए खंडोपर मनावी शकीश, एवा विचारथी समुद्रमा चर्मरत्न मूक्यु; ते उपर सर्व सैन्यादिकनो आधार रह्यो हतो, चर्मरत्नना एक हजार देवता सेवक कहेवाय छे, तेमां प्रथम एके विचार्यु के कोण जाणे केटलांय वर्षे आमांथी छूटको थशे ? माटे देवांगनाने तो मळी आयु एम धारी ते चाल्यो गयो. पछी बीजो गयो, पछी त्रीजो गयो; अने एम करता करता हजारे चाल्या गया. त्यारे चर्मरत्न बूडयु. अश्व, गज अने सर्व सैन्यसहित सुभुम नामनो ते चक्रवर्ती बूड्यो; पापभावनामां ने पापभावनामां मरीने ते अनंत दुःखथी भरेलो सातमी तमतमममा नर्कने विषे जइने पड्यो. जुओ! छ खंडनुं आधिपत्य तो भोगवq रहुं परंतु अकस्मात् अने भयंकर रीते परिग्रहनी प्रीतिथी ए चक्रवर्तीनुं मृत्यु थयु, तो पछी बीजा माटे तो कहेज शुं ? परिग्रह ए पापर्नु मूळ