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________________ ३४ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. गम ए पण सत्संग छे. मलिन वस्त्रने जेम साबु तथा जळ स्वच्छ करे छे तेम शास्त्रबोध अने मत्पुरुषोनो समागम, आत्मानी मलिनता टाळीने शुद्धता आपे हे. जेनाथी हमेशनो परिचय रही राग, रंग, गान, तान अने स्वादिष्ट भोजन सेवातां होय ते तमने गमे तेवो प्रिय होय तोपण निश्चय मानजो के ते सत्संग नथी पण कुसंग छे. सत्संगथी प्राप्त थयेलं एक वचन अमूल्य लाभ आपे छे. तत्वज्ञानीओए मुख्य बोध एवो कर्यो छे के सर्व संग परित्याग करी, अंतरमा रहेला सर्व विकारथी पण विरक्त रही एकांतनुं सेवन करो. तेमां सत्संगनी स्तुति आवी जाय छे. केवळ एकांत तेतो ध्यानमा रहेg के योगाभ्यासमां रहे, ए छे, परंतु समस्वभाविनो समागम जेमांथी एकज प्रकारनी वर्त्तनतानो प्रवाह नीकळे छे ते, भावे एकज रुप होवाथी घणा माणसो छतां अने परस्परनो सहवास छतां ते एकांतरुपज छे, अने तेवी एकांत मात्र संतसमागममां रही छे. कदापि कोइ एम विचारशे के विषयीमंडळ मळे छे त्यां समभाव सरखी वृत्ति होवाथी एकांत कां न कहेबी ? तेनुं समाधान तत्काळ छे के तेओ एक स्वभावि होता नथी. तेमां परस्पर स्वार्थ बुद्धि अने मायानुं अनुसंधान होय छे, अने ज्यां ए बे कारणथी समागम छे ते एक स्वभावि के निर्दोष होता नथी. निर्दोष अने समस्वभावि समागम तो परस्परथी शांत मुनीश्वरोनो छे तेमज धर्मध्यान प्रशस्त अल्पारंभी पुरुषनो पण केटलेक अंशे छे. ज्यां स्वार्थ अने माया कपटज छे त्यां समस्वभावता नथी, अने ते सत्संग पण नथी. सत्संगथी जे सुख अने आनंद मळे छे ते अति स्तुतिपात्र छ. ज्यां शास्त्रोना सुंदर प्रश्नो थाय, ज्यां उत्तम ज्ञान ध्याननी सुकथा थाय, ज्यां सत्पुरुषोनां चरित्रपर विचार बंधाय, ज्यां तत्वज्ञानना तरंगनी लहरियो छुटे, ज्यां सरळ स्वभावथी सिद्धांत विचार चर्चाय, ज्यां मोक्षजन्य कथन
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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