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________________ ३२ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु. भ्यास करे छे. एमां एक वचन पर्वत ए, बोल्यो के 'अजाहोतव्यं.' त्यारे नारदे पूछयु अज ते शु पर्वत ? पर्वते कह्यु: 'अज' ते 'बोकडो.' नारद बोल्योः आपणे त्रणे जण तारा पिता कने भणता हता त्यारे तारा पिताए तो 'अन' ते त्रण वर्षनी 'व्रीहि ' कही छे अने तुं अवळु शा माटे कहे छे? एम परस्पर वचनविवाद वध्यो. त्यारे पर्वते कह्यु: आपणने वसुराजा कहे ते खरं. ए वातनी नारदे हा कही, अने जीते तेने माटे अमुक सरत करी. पर्वतनी मा जे पासे बेठी हती तेणे आ सांभळ्युं. 'अज' एटले 'त्रीहि' एम तेने पण याद हतुंः सरतमा पोतानो पुत्र हारशे एवा भयथी पर्वतनी मा रात्रे राजा पासे गइ अने पूछ्युः राजा, “अज' एटले शुं ? वसुराजाए संबंधपूर्वक कह्यु. 'अज' एटले 'नीहि.' त्यारे पर्वननी माए राजाने कयुः मारा पुत्रथी 'बोकडो' कहेवायो छे माटे तेनो पक्ष करवो पडशे; तमने पूछवा माटे तेओ आवशे. वसुराजा बोल्योः हुं असत्य केम कहुं ? माराथी ए बनी शके नहि. पर्वतनी माए कडं, पण जो तमे मारा पुत्रनो पक्ष नहीं करो तो तमने हुं हत्या आपीश. राजा विचारमा पडी गयो के सत्यवडे करीने हुं मणिमय सिंहासनपर अद्धर बेसुं छु. लोकसमुदायने न्याय आपु छु. लोक पण एम जाणे छे के राजा सत्य गुणे करीने सिंहासनपर अंतरिक्ष बेसे छे. हवे केम करवू ? जो पर्वतनो पक्ष न करूं तो ब्राह्मणी मरे छे; ए वळी मारा गुरुनी स्त्री छे. न चालतां छेवटे राजाए ब्राह्मणीने कह्युः तमे भले जाओ; हुं पर्वतनो पक्ष करीश. आवो निश्चय करावीने पर्वतनी मा घेर आवी. प्रभाते नारद, पर्वत अने तेनी मा विवाद करतां राजा पासे आव्यां. राजा अजाण थई पूछवा लाग्योः शुं छे पर्वत ? पर्वते कयुः राजाधिराज ! अज ने शुं ? ते कहो. राजाए नारदने पुछयु, तमे शुं कहोछो? नारदे कह्यु: 'अज' ते त्रण वर्षनी 'नीही तमने क्यां नथी सांभळतुं ? वसुराजा बोल्योः 'अज'
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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