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________________ मोक्षमाळा- पुस्तक बीजं. जिज्ञासु-भाई, त्यारे पूज्य कोण ? अने भक्ति कोनी करवी के जेवढे आत्मा स्वशक्तिनो प्रकाश करे. ૨૮ सत्य- शुद्ध सत्चिदानंदस्वरुप जीवन सिद्ध भगवाननी भक्तिथी तेज सर्व दूषणरहित, कर्ममलहीन, मुक्त वीतराग सकळभय रहित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवाननी भक्तिथी आत्मशक्ति प्रकाश पामे छे. जिज्ञासु - एओनी भक्ति करवाथी आपणने तेओ मोक्ष आपे छे एम मानवुं खरुं ? सत्य - भाइ जिज्ञासु, ते अनंतज्ञानी भगवान तो निरागी अने निर्विकार छे. एने स्तुति निंदानुं आपणने कंइ फळ आपवानुं प्रयोजन नथी. आपणो आत्मा अज्ञानी अने मोहांध थइने जे कर्मदळथी घेरायलो छे ते कर्मदळ टाळवा अनुपम पुरुषार्थनी अवश्य छे. सर्व कर्मदळ क्षय करी अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र, अनंतवीर्य, अने स्वस्वरुपमय थया एवा जिनेश्वरोनुं स्वरुप - आत्मानी निश्चयनये राद्धि होवाथी ते भगवाननुं स्मरण, चितवन, ध्यान अने भक्ति ए पुरुषार्थता आपे छे. विकारथी आत्मा विरक्त करे छे. शांति अने निर्जरा आपे छे. जेम तरवार हाथमां लेवाथी शौर्यति अने भांग पीवाथी निशो उत्पन्न तेम ए गुण 'चितवनथी' आत्मा स्वस्वरुपानंदनी श्रेणिए चढतो जाय छे. दर्पण जोतां जेम मुखाकृतिनुं भान थाय छे तेम सिद्ध के जिनेश्वरस्वरुपनां चिंतवनरूप दर्पणथी आत्मस्वरुपनुं भान थाय छे. शिक्षापाठ १४ जिनेश्वरनी भक्ति भाग २. जिज्ञासु - आर्य सत्य ! सिद्धस्वरुप पामेला ते जिनेश्वरो तो सघळा पूज्य छे; त्यारे नामथी भक्ति करवानी कंइ जरुर छे ?
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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