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मोक्षमाळा - पुस्तक बीजुं.
शिक्षापाठ १२ उत्तम गृहस्थ.
संसारमा रह्या छतां पण उत्तम श्रावको ग्रहस्थाश्रमथी आत्मसाधनने साधे छे; तेओनो ग्रहस्थाश्रम पण वखणाय छे.
ते उत्तम पुरुष, सामायिक, क्षमापना चोविहार प्रत्याख्यान इ० यम नियमने सेवे छे.
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पर पनि भणी मातृ बहेननी द्रष्टि राखे छे. सत्पात्रे यथाशक्ति दान दे छे.
शांत, मधुरी अने कोमळ भाषा बोले छे. सत्शास्त्रनुं मनन करे छे.
बने त्यां सुधी उपजीविकामां पण माया, कपट, इ० करतो नथी.
स्त्री, पुत्र, मात, तात, मुनि अने गुरु ए सघळांने यथायोग्य सन्मान आपे छे.
माबाने धर्मनो बोध आपे छे.
यत्नाथी घरनी स्वच्छता, रांधवुं, सींध, शयन इ० रखावे छे. पोते विचक्षणताथी वर्ती स्त्री, पुत्रने विनय अने धर्मि करे छे. सघळां कुटुंबमां संपनी वृद्धि करे छे.
आवेला अतिथिनुं यथायोग्य सन्मान करे छे. याचकने क्षुधातुर राखतो नथी.
सत्पुरुषोनो समागम अने तेओनो बोध धारण करे छे. समर्याद अने संतोष युक्त निरंतर वर्ते छे.
यथाशक्ति शास्त्र संचय जेना घरमा रह्यो छे. अल्प आरंभथी जे व्यवहार चलावे छे.
आवो गृहस्थावास उत्तम गतिनुं कारण थाय, एम ज्ञानीओ कहे छे.