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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. ... पिता-तुं त्यां शा कारणे जाय छे ते मने कहे जोईए.
पुत्र-आप एम केम कहोछो पिताजी ? संसारमा विचक्षण थवाने माटे पद्धतियो समजु, व्यवहारनी नीति शी एटला माटे थइने आप मने त्यां मोकलो छो.
पिता-तारा ए शिक्षक दुराचरणी के एवा होत तो ? . पुत्र-तो तो बहु माटुं थान; अमने अविवेक अने कुवचन बोलतां आवडत व्यवहार नीति तो पछी शीखवे पण कोण ?
पिता-जो पुत्र, ए उपरथी हुँ हवे तने एक उत्तम शिक्षा कहुं. जेम संसारमां पडवा माटे व्यवहारनीति शीखवानुं प्रयोजन छे, तेम धर्मतत्त्व अने धर्मनीतिमा प्रवेश करवानुं परभवने माटे प्रयोजन छे. जेम ते व्यवहारनीति सदाचारी शिक्षकथी उत्तम मळी शके छ तेम परभव श्रेयस्करधर्मनीति उत्तम गुरुथी मळी शके छे. व्यवहारनीतिना शिक्षक अने धर्मनीतिना शिक्षकमां वहु भेद छे. एक बीलोरीना कडका जेम व्यवहार शिक्षक अने अमूल्य कौस्तुभ जेम आत्मधर्मशिक्षक छे.
पुत्र-शीरछत्र ! आपनुं कहवू व्याजबी छे. धर्मना शिक्षकनी संपूर्ण अवश्य छे. आपे वारंवार संसारनां अनंत दुःख संबंधी मने कयुं छे एथी पार पामवा धर्मन सहायभूत छे; त्यारे धर्म केवा गुरुथी पामिये तो श्रेयस्कर नीवडे ते मने कृपा करीने कहो.
शिक्षापाठ ११ सद्गुरुतत्त्व भाग २.
पिता-पुत्र! गुरु त्रण प्रकारना कहेवाय छे. १ काष्टस्वरुप. २ कागळस्वरुप. ३ पथ्थरस्वरुप. काष्ट स्वरुप गुरु सर्वोत्तम छ कारण संसाररुपी समुद्रने काष्टस्वरुपी गुरुज तरे छे-अने तारी शके छे.