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________________ सधर्मतत्त्व. १३ सातमी व्यवहारदया-उपयोगपूर्वक तथा विधिपूर्वक जे दया पाळवी तेनुं नाम प्यवहारदया. आठमी निश्चयदया-शुद्ध साध्य उपयोगमा एकता भाव, अने अभेद उपयोग ते निश्चयदया. ए आठ प्रकारनी दयावडे करीने व्यवहारधर्म भगवाने कह्यो छे एमां सर्व जीवनुं सुख, संतोष, अभयदान ए सघळु विचारपूर्वक जोतां आवी जाय छे. बीजो निश्चयधर्म-पोतानां स्वरुपनी भ्रमणा टाळवी, आत्माने आत्मभावे ओळखवो, आ संसार ते मारो नथी, हुं एथी भिन्न परमअसंग सिद्धसद्रश्य शुद्ध आत्मा छु, एवी आत्मस्वभाववर्त्तना ते निश्चयधर्म छे. जेमां कोइ प्राणीनुं दुःख, अहित के असंतोष रह्यो छे त्यां दया नथी; अने दया नथी त्यां धर्म नथी. अहंत भगवाननां कहेलां धर्मतत्वथी सर्व प्राणी अभय थाय छे. -oictor – शिक्षापाठ १० सद्गुरुतत्त्व भाग १. पिता-पुत्र, तुं जे शाळामां अभ्यास करवा जाय छे ते शाळानो शिक्षक कोण छे ? पुत्र-पिताजी, एक विद्वान अन समजु ब्राह्मण छे. पिता-तेनी वाणी, चालचलगन वगेरे केवां छे ? पुत्र-एनां वचन बहु मधुरां छे. ए कोईने अविवेकथी बोलाबता नथी अने बहु गंभीर छे, बाले छे त्यारे जाणे मुखमाथी फुल झरे छे. कोईवें अपमान करता नथी; अने अमने योग्यनीति समजाय तेवी शिक्षा आपे छे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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