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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. पास्यो. बे हाथनी अंजलि करीने ते एम बोल्यो के, हे भगवन् ! तये मने भली रीते उपदेश्योः तमे जेम हतुं तेम अनाथपणुं कही बताव्यु. महर्षि ! तमे सनाथ, तमे सबंधव अने तमे सधर्म छो. नमे सर्व अनाथना नाथ छो. हे पवित्र संयति ! हुं तमने क्षमावु छु. समारी ज्ञानी शिक्षाथी लाभ पाम्यो छु. धर्मध्यानमां विघ्न करवावाळू भोग भोगव्या संबंधीनुं में तमने हे महा भाग्यवंत ! जे
आमंत्रण दी, ते संबंधीनो मारो अपराध मस्तक नमावीने क्षमाबुलु. एवा प्रकारथी स्तुति उच्चारीने राजपुरुष केशरी श्रेणिक विनयथी प्रदक्षिणा करी स्वस्थानके गयो. ___महा तप्पोधन, महा मुनि, महा प्रज्ञावंत, महा यशवंत, महा निग्रंथ अने महा श्रुत अनाथी मुनिए मगध देशना श्रेणिक राजाने पोतानां वितक चरित्रथी जे बोध आप्यो छे, ते खरे ! अशरणभावना सिद्ध करे छे. महा मुनि अनाथीए भोगवेली वेदना जेवी के एथी अति विशेष वेदना अनंत आत्माओने भोगवता जोइए छीए. ए केतुं विचारवा लायक छे ! संसारमा अशरणता अने अनंत अनाथता छवाइ रही छे, तेनो त्याग उत्तम तत्त्वज्ञान अने परम शीलने सेववाथीज थाय छे. एज मुक्तिनां कारण रुप छे. जेम संसारमा रह्या अनाथी अनाथ हता; तेम प्रत्येक आत्मा तत्त्वज्ञाननी प्राप्ति विना सदैव अनाथज छे ! सनाथ थवा सदेव, सद्धर्म अने सद्गुरुने जाणवा अने ओळखवा अवश्यनां छे.
शिक्षापाठ ८ सद्देवतत्त्व. त्रण तत्त्व आपणे अवश्य जाणवां जोइए. ज्यां सुधी ते तत्त्व संबंधी अज्ञानता होय छे त्यांसुधी आत्महित नथी. एत्रण तत्त्व सदेव, सधर्म अने सद्गुरु छे. आ पाठमां सदेवतुं स्वरुप संक्षेपमां कहीशुं.