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सद्देवतत्त्व चक्रवर्ति-राजाधिराज के राजपुत्रं छतांजेओ संसारने एकवेल अनंत शोकनुं कारण मानीने तेनो त्याग करे छे. पूर्ण दया, शांति, क्षमा, निरागीत्व अने आत्मसमृद्धिथी त्रिविध तापनो लय करे छे. महा उग्र तपोपध्यानवडे विशोधन करीने जेओ कर्मना समूहने बाळी नाखे छे, अने चंद्र तथा शंखथी अत्यंत उज्वळ एवं शुक्ल ध्यान जेओने प्राप्त थाय छे. सर्व प्रकारनी निद्रानो जेओ क्षय करे छे. संसारमा मुख्यता भोगवतां ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहिनीय अने अंतराय ए चार कर्म भश्मिभूत करी, जेओ केवल ज्ञान केवल दर्शनसहित स्वस्वरुपथी विहार करे छे. जेओ चार अघाति कर्म रह्या सुधी यथाख्यात चारित्ररुप उत्तम शीलनुं सेक्न करे छे. कर्मग्रीष्मथी अकळाता पामर प्राणीओने परम शांति मळवा जेओ शुद्ध बोध बीजनो निष्कारण करुणाथी मेघधारा वाणीवडे उपदेश करे छे. कोई पण समये किंचित् मात्र पण संसारी वैभवविलासनो स्वमांश पण जेने रह्यो नथी. धनघाति कर्मक्षय कर्या पहेलां पोतानी छद्मस्थता गणी जेओ श्रीमुखवाणीथी उपदेश करता नथी. पांच प्रकारना अंतराय, हास्य, गति, अरति, भय, जुगुप्सा, शोक, मिथ्यात्व, अज्ञान, अप्रत्याख्यान, राग, द्वेष, निद्रा अने काम ए अढार दूषणथी रहित छे, सच्चिदानंद स्वरुपथी विराजमान छे, महा उद्योतकर बार गुणो जेओने प्रगटे छे. जन्म, मरण अने अनंत संसार जेनो गयो छे तेने, निग्रंथना आगममां सदेव कथा छे. ए दोषरहित शुद्ध आत्मस्वरुपने पामेला होवाथी पूजनीय परमेश्वर कहेवा योग्य छे. उपर कह्या ते अढार दोषमांनो एक पण दोष होय त्यां सदेवर्नु स्वरुप घटतुं नथी. आ परम तत्त्व महत्पुरुषोथी विशेष जाणवू अवश्यतुं छे.