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अनाथी मुनि भाग ३०
ए रोग उपशम्यो नहि. ए वेळा पुनः पुनः में असह्य वेदना भोगवी, पछी हुं प्रपंचीसंसारथी खेद पाम्यो. एकवार जो आ महा विडंबनामय वेदनाथी मुक्त थउं तो खंती, दंती अने निरारंभी प्रवर्ज्याने धारण करूं, एम चिंतीने शयन करी गयो. ज्यारे रात्रि अतिक्रमी गइत्यारे हे महाराजा ! मारी ते वेदना क्षय थइ गइ; अने हुं निरोगी थयो. मात, तात स्वजन बंधवादिकने पूछीने प्रभाते में महा क्षमावंत, इंद्रियने निग्रह करवावा अने आरंभोपाधिथी रहित एवं अणगारत्व धारण कर्यु.
शिक्षापाठ ७ अनाथी मुनि भाग ३.
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हे श्रेणिक राजा ! त्यार पछी हुं आत्मा परमात्मानो नाथ थयो . हवे हुं सर्व प्रकारना जीवनो नाथ छउं तुं जे शंका पाम्यो हतो ते हवे टळी गइ हशे . एम आखं जगत्- चक्रवर्त्ति पर्यंत अशरण अने अनाथ छे. ज्यां उपाधि छे त्यां अनाथता छे; माटे हुं कहुं छउं ते कथन तुं मनन करी जजे. निश्चय मानजे के आपणो आत्माज दुःखनी भरेली वैतरणीनो करनार छे; आपणो आत्माज क्रूर साल्मलि वृक्षनां दुःखनो उपजावनार छे; आपणो आत्माज छित वस्तुरुपी दुधनी देवावाळी कामधेनु सुखनो उपजावनार छे; आपणो आत्माज नंदनवननी पेठे आनंदकारी छे; आपणो आत्माज कर्मनो करनार छे; आपणो आत्माज ते कर्मनो टाळनार छे; आपणो आत्माज दुःखोपार्जन करनार छे, अने आपणो आत्माज सुखोपार्जन करनार छे; आपणो आत्माज मित्र ने आपणो आत्माज वैरी छे; आपणो आत्मा कनिष्ठ आचारे स्थित अने आपणो आत्माज निर्मळ आचारे स्थित रहे छे. एम आत्मप्रकाशकबोध श्रेणिकने ते अनाथी मुनिए आप्यो श्रेणिकराजा बहु संतोष
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