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अनाथी मुनि भाग २०
शिक्षापाठ ६ अनाथी मुनि भाग २.
श्रेणिक, मुनिना भाषणथी स्मित हसीने बोल्यो, तमारे महा राद्धिवंतने नाथ केम न होय ? जो कोइ नाथ नथी तो हूं थंड छडं. हे भयंत्राण ! तमे भोग भोगवो. हे संयति ! मित्र, ज्ञातिए करीने दुर्लभ एवो आ तमारो मनुष्यभव सुलभ करो ! अनाथीए क, अरे श्रेणिक राजा ! पण तुं पोते अनाथ हो तो मारो नाथ शुं थइश ? निर्धन ते धनाढ्य क्यांथी बनावे ? अबुध ते बुद्धिदान क्यांथी आपे ? अज्ञ ते विद्वता क्यांथी आपे ? वंध्या ते संतान क्यांथी आपे ? ज्यारे तुं पोते अनाथ छे; त्यारे मारो नाथ क्यांथी थइश ? मुनिना वचनथी राजा अति आकुळ अने अति विस्मित थयो. कोइ काळे जे वचननुं श्रवण थयुं नथी ते वचननुं यति मुखथी श्रवण थयुं एथी ते शंकित थयो अने बोल्यो, हुं अनेक प्रकार ना अश्वनो भोगी छउं अनेक प्रकारना मदोन्मत्त हाथीओनो धणी छ; अनेक प्रकारनी सैन्या मने आधीन छे; नगर, ग्राम, अंतःपुर अने चतुष्पादनी मारे कई न्यूनता नथी; मनुष्य संबंधी सघळा प्रकारना भोग हुं पाम्यो छडं; अनुचरो मारी आज्ञाने रुडी रीते आराधे छे; एम राजाने छाजती सर्व प्रकारनी संपत्ति मारे घेर छे; अनेक मनवांछित वस्तुओ मारी समीपे रहे छे. आवो हुं महान् छतां अनाथ केम होउं ? रखे हे भगवन्, तमे मृषा बोलता हो ! मुनिए कयुं, राजा ! मारुं कहेतुं तुं न्यायपूर्वक समज्यो नथी. हवे हुं जेय अनाथ थयो; अने जेम में संसार त्याग्यो तेम तने कहुं छउं; ते एकाग्र अने सावधान चित्तथी सांभळ; सांभळीने पछी तारी शंकानो सत्यासत्य निर्णय करजे.
aria नामे अति जीर्ण अने विविध प्रकारनी भव्यताथी भरेली एक सुंदर नगरी छे; त्यां रीद्धिथी परिपूर्ण धनसंचय नामनो