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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु. रनां पक्षियोनां मधुरां गायन त्यां संभळातां हतां; नाना प्रकारनां फूलथी ते वन छवाइ रह्यु हतुं नाना प्रकारनां जळनां झरण त्यां वहेतां हता; टुंकामां ए वन नंदनवन जेवू लागतुं हतुं. ते वनमा एक झाड तळे महा समाधिवंत पण सुकुमार अने सुखोच्चित मुनिने ते श्रेणिके बेठेलो दीठो. एनु रुप जोइने ते राजा अत्यंत आनंद पाम्यो. उपमारहित रुपथी विस्मित थइने मनमां तेनी प्रशंसा करवा लाग्यो. आ मुनिनो केवो अद्भुत वर्ण छे ! एनुं के मनोहर रुप छ ! एनी केवी अद्भुत सौम्यता छ ! आ केवी विस्मयकारक क्षमानो धरनार छे ! आना अंगथी वैराग्यनो केवो उत्तम प्रकाश छे ! आनी केवी निर्लोभता जणाय छे ! आ संयति केवु निर्भय नम्रपणुं धरावे छे ! ए भोगथी केवो विरक्त छे ! एम चिंतवतो चिंतवतो-मुदित थतो थतो-स्तुति करतो करतो-धीमेथी चालतो चालतो, प्रदक्षिणा देइने ते मुनिने वंदन करीने अति समीप नहि तेम अति दूर नहीं, एम ते श्रेणिक बेठो; पछी वे हाथनी अंजलि करीने विनयथी तेणे ते मुनिने पूछयु के हे आर्य ! तमे प्रशंसा करवा योग्य एवा तरुण छोः भोगविलासने माटे तमारी वय अनुकूळ छे; संसारमा नाना प्रकारनां सुख रह्यां छे, ऋतु ऋतुना कामभोग, जळ संबंधीना विलास, तेमज मनोहारिणी स्त्रीओनां मुखवचन- मधुरं श्रवण छतां ए सघळानो त्याग करीने मुनित्वमा तमे महा उद्यम करोछो एनुं गुं कारण? ते मने अनुग्रहथी कहो. राजानां आवां वचन सांभळीने मुनिए कह्यु, हे राजा! हुं अनाथ हतो. मने अपूर्व वस्तुनो प्राप्त करावनार, तथा योगक्षेमनो करनार, मारापर अनुकंपा आणनार. करुणाथी करीने परम सुखनो देनार एवो मारो कोइ मित्र थयो नहि. ए कारण मारा अनाथीपणानुं हतुं.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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