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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. छो; ए उपरथी तमने कई विचार आवे छे ? में कर्तुं छे ते उपरथी तमने विचार आवतो होय तो कहो के ते शा वडे थाय छे ? पोतानां बांधेलां शुभाशुभ कर्मवडे. कर्म वडे आखो संसार भमवो पडे छे. परभव नहि माननार पोते ए विचारो शा वडे करे छे ?-ते उपर यथार्थ विचार करे तो ते पण आ सिद्धांत मान्य राखे. शिक्षापाठ ४ मानवदेह. आगळ कयुं छे ते प्रमाणे विद्वानो मानवदेहने बीजा सघळा देह करतां उत्तम कहे छे ते उत्तम कहेवानांकेटलांक कारणो अत्रे कहीशुं. आ संसार बहु दुःखथी भरेलो छे. एमांथी ज्ञानीयो तरीने पार पामवा प्रयोजन करे छे. मोक्षने साधी तेओ अनंत सुखमां विराजमान थाय छे. ए मोक्ष वीजा कोइ देहथी मळतो नथी. देव, तिर्यंच के नर्क ए एके गतिथी मोक्ष नथी, मात्र मानवदेहथी मोक्ष छे. त्यारे तमे कहेशो के सघळा मानवियोनो मोक्ष केम थतो नथी? तेनो उत्तर जेओ मानवपणुं समजे छे, तेओ संसार शोकने तरी जाय छे. जेनामां विवेकबुद्धि उदय पामी होय, अने ते वडे सत्यासत्यनो निर्णय समजीने परम तत्त्वज्ञान तथा उत्तम चारित्ररूप सद्धर्मनुं सेवन करीने जेओ अनुपम मोक्षने पामे छे, तेना देहधारीपणाने विद्वानो मानवपणुं कहे छे. मनुष्यना शरीरना देखाव उपरथी विद्वानो तेने मनुष्य कहेता नथी; परंतु तेना विवेकने लइने कहे छे. बे हाथ, बे पग, बे आंख, बे कान, एक मुख, बे होठ अने एक नाक ए जेने होय तेने मनुष्य कहेवो एम आपणे समजवु नहिः . जो एम समजीए तो पछी वांदराने पण मनुष्य गणवो जोइए; एणे पण ए प्रमाणे सघळं प्राप्त कयु छे. विशेषमा एक पूंछड़े पण
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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