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मनी मोक्षमाला क्यारनी प्रसिद्धि पामी गइ छे. आ ग्रंथ जैनधर्मनी कुंची समान छे. आ तेमणे सत्तरवर्षनी वये रच्यो हतो. तेमना अप्रसिद्ध ग्रंथोमां आत्मसिद्धिशास्त्र' तथा पंचास्तिकाय अने आत्माना विषयपर केटलाक निबंधो छे. जैनधर्म तथा तेना तत्वज्ञाननो मुख्य सिद्धांत कर्मवाद छे. कर्मवादमां तेमने अखंड श्रद्धा हती. तेमणे आ कर्मवादपर प्रमाणो साथे एक पुस्तक लखवानो अने भगवान् महावीरे प्रकाशेला सिद्धांतोपर ग्रंथमाला लखवानी विचार हतो, परंतु दुर्भाग्ये तेम तेमनाथी लांबी मांदगीने सबबे थइ शक्युं नहि. वळी तेमणे धर्मना केटलाक कठिन सिद्धांतो प्रतिपादित कथं हता. जैन अने बौद्ध साहित्यनुं संभाळपूर्वक निरीक्षण कर्या पछी ओ एवा निर्णयपर आव्या हता के महावीर अने बुद्ध बने भिन्न महान् पुरुषो हता, तेओना सिद्धांतो तद्दन जुदा हता अने जैनधर्म ए बोद्धधर्मनी शाखा छे एवी युरोपीय पंडितोनी जे मानीनता हती ते बराबर प्रमाण सहित नथी. ओ कहता के जैनोना बे हजार वर्षनामचीन हस्तलिखित पुस्तकोमां स्पष्ट रीते जणाय छे के महान् महावीर अने महान् बुद्ध ए धार्मिक प्रतिस्पर्धिओ हता. श्रीमद् आ पण निश्रित रीते प्रतिपादित करता के जैननी बे मुख्य शाखा नामे दिगंबर अने श्वेतांबर देशनी अनियमित स्थितिने लइने जन्म पामेली छे.
श्रीमद् राजचंद्र दरेक रीते लाक्षणिक चिन्हथी अंकित पुरुष हता ए दर्शाववाने तेमनी जींदगींनी उपर दर्शावेली लघु रेखा पूरती छे. तेमनी मानसिक शक्तिओ अद्भूत रीत चमत्कृतिवाळी हती, मज तेना चारित्र्यानी नैतिक उन्नति चकित करावनार हती. सत्यप्रत्ये मनो आदर, व्यापारमां अत्यंत चीवटथी नैतिक तत्वोने वळगी रहेवानुं वर्त्तन, गमे तेटली विरुद्धता छतां जे खरुं तेओ मानता ते करवानी मनी निश्चय वृत्ति, अने तेमनो कर्तव्य संबंधे उच्च आदर्श,
१ आ लखाया पश्चात् आ प्रथनी चार आष्टत्तिओ प्रसिद्ध यह चूकी छे.
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