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________________ २८ लखे नहि त्यां सुधी कोईए पोतानी साथे पत्रव्यवहार पण चलाववो नहि. गुजरातना वनोमां तेओ एकांत वास गाळता अने त्यां रही चिंत्वन अने योगमां दहाडा अने अठवाडीआओ व्यतीत करता. तेओ रखेने पोते ओळखाइ जाय अथवा पोताना स्थळनी खबर पडी जाय तेवी धास्तीथी घणा गुप्त रहेवानो हमेश प्रयास करता, छतां तेओ वारंवार ओळखाइ जता अने लोकोनी म्होटी संख्या तेमनां उपदेश अने शिक्षा वचनो श्रवण करवानी जिज्ञासापूर्वक तेमनी पाछळ आवती. व्यापार कर्याने दश वर्ष थया पछी तेमने लाग्यु के जे हेतुथी व्यापार-धंधामा प्रयाण कयु हतुं ते हेतु तेओए पूर्ण कर्यो हतो. तेथी व्यापारनी साथेनो पोतानो संबंध निवृत्तवानी इच्छा तेमणे जणावी. ज्ञान, धनसंपत्ति, सांसारिक पदवी, कौटुंबिक सुख (कारण के तेमने हयात मातापिता, एक परिणीत बंधु, चार परिणीत व्हेनो, स्त्री, बे पुत्र अने बे पुत्रीओ हती) प्राप्त करी संसारनो त्याग करी साधु-मुनिनुं जीवन गाळवानी तेमणे तैयारी करी. एटलामा ३२ मा वर्षनी वये तेमनी शारीरिक प्रकृति नबळी पडी. अनेक कुशळ डाक्टरोनी सारवार नीचे राखवामां आव्या अने एक वखत तो तेमनी प्रकृति सुधरी 'जवानी आशा रखाइ परंतु व्याधिए फरीवार देखाव दीधो अने काबेल्यतवाळी सारवार अने तेमना भक्तशिष्योनी मावजत छतां एक वर्ष करतां वधारे वखत बीछानावश रहीने काठियावाडना राजकोट शहेरमां, गया मासनी नवमी तारीखे ( १९०१ ना एप्रिल मासमां ) तेओ शांतिथी कालशरण थया. तेमनी लांबी अने तीव्र मांदगी दरम्यान तेमणे कदी पण निःश्वास अथवा आर्तता दाखवी नहोती. ज्यारे तेमना बीछानानी आसपासना बीजा बधाओ दीलगीर थता त्यारे पण पोते आनंदसमेत रहेता. छूटी छवायी कविता शिवाय तेमणे केटलांक पुस्तको लख्यां छे.' १ श्रीमद् राजचंदना लखेला जे जे लेखो मळी आव्या तेनो संग्रह करी 'परमश्रुतप्रभावक मंडळे रॉयल चार पेजी ७०० पानानो भव्य ग्रंथ बहार पाज्योछे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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