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________________ २७ रहेती अने संस्कृत अने प्राकृतना नियमित अभ्यास वगर तेओ ते भाषामांना पुस्तको म्होटा पंडितोनी पेठे यथार्थ रीते समजी शकला अने बीजाने समजावी शकता. तेओए जोयुं के धर्मगुरुओ वर्तमानकाळमां सांप्रदायिक दृष्टिथी संकुचित-टुंक मर्यादावाळा-विचारो धरावे छे अने कालना परिवर्तन अनुसार केवी रीते वर्तन करवू जोइए ते समजता नथी. विशेष जेओ आ संसारनो त्याग करी त्यागवृत्त स्वीकारे छे तेओमा केटलाक सांसारिक संपत्तिओना अभावे तथा संसारथी एक या बीजा कारणथी थयेला असंतोषने परिणामे तेम करे छे. आवा पुरुषो पोताना चारित्र्यनी असर तेओना समुदाय प्रत्ये पाडी शकता नथी. श्रीमद्नी एवी मानीनता हती के धनवान अने सांसारिक सारी स्थितिवाळो पुरुष संसारनो त्याग करे तो पोताना चारित्र्यथी संगीन हित करी शके. जनसमाज तेना शुद्ध हृदय अने निःस्वार्थना सद्गुणनी खात्री थवाथी तेना कहेवा प्रमाणे दोरावामां घणीज तत्पर रहे अने तेना उपदेशथी लाभ मेळवती थाय. आवा विचार श्रीमद्ना हता अने तेनी साथे जनसमाज आगळ एक साधु अने धार्मिक नायक तरीके रजु थवा योग्य स्थितिमां मूकाया नथी एम तेओ मानता हता; अने तेथीज गृहस्थदशाएज जीवन गाळवार्नु चालु राख्युं हतुं. ज्यारे तेना आंतरिक विचारो संसारप्रत्ये तद्दन उदासीन वर्त्तता हता. ___ ज्यारे श्रीमद् २१ वर्षना हता, त्यारे तेमणे धंधामां प्रयाण कर्यु अने घणा टुंक वखतमा एक बाहोश झवेरी तरीकेनी नामना मेळवी. वधता जता व्यापारनी उपाधिओमां पण धर्म अने तत्त्वज्ञानना पोताना प्रिय अभ्यासमां तेओए खलेल आववा दीधी नहि. पोताना उद्योगरत जीवनमा चूपकीदीथी ज्ञानवृद्धि करता हता. तेमज हमेशां पुस्तकोमा गुंथायेला रहेता हता. वळी, वर्षमा केटलाक महिनाओ तो पोते मुंबई 'छोडी चाल्या जता अने पोतानी पेढीप कही जता के ज्यांसुधी पोते
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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