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मोक्षमाला-पुस्तक बीजूं. एना सिद्धांतो केवा अखंड संपूर्ण अने दयामय छे ! एमां दूषण तो कांइ छेज नहि ! केवळ निर्दोष तो मात्र जेनुं दर्शन छे ! एवो एके पारमार्थिक विषय नथी के जे जैनमां नहीं होय अने एवं एक्के तत्त्व नथी के जे जैनमां नी; एक विषयने अनंनभेदे परिपूर्ण कहेनार ते जैनदर्शन छे. प्रयोजन भूततत्त्व एना जेवू क्यांय नथी. एक देहमांबे आत्मा नथी; तेम आखी सृष्टिमांबे जन एटले जैननी तूल्य बीजु दर्शन नथी. आम कहेवानुं कारण शुं ? ते मात्र तेनी परिपूर्णता, निरागीता, सत्यता अने जगद् हितैषिता.
- शिक्षापाठ ९६ तत्त्वावबोध भाग १५.
___ न्यायपूर्वक आटलं अमारे पण मान्य राखq जोइए के ज्यारे एकदर्शनने परिपूर्ण कही वात सिद्ध करवी होय त्यारे प्रतिपक्षनी मध्यस्थ बुद्धिथी अपूर्णता दीववी जोइए. पण ए बे वातपर विवेचन करवा जेटली अहीं जग्यो नथी; तो पण थोडं थोडं कहेता आव्या छीए. मुख्यत्वे कहेवान के ए वात जेने रुचिकर थती न होय के असंभवित लागती होय तेणे जैनतत्त्वविज्ञानी शास्त्रो अने अन्य तत्त्वविज्ञानी शास्त्रो मध्यस्थ बुद्धिथी मनन करी न्यायने कांटे तोलन करवू. ए उपरथी अवश्य एटलं महावाक्य नीकळशे, के जे आगळ नगारापर डांडी ठोकीने कहेवायुं हतुं ने खरुं छे. __ जगत् गाडरियो प्रवाह छे. धर्मना मतभेद संबंधीना शिक्षापाठमां दर्शाव्या प्रमाणे अनेक धर्ममतनी जाल लागी पडी छे. विशुद्ध आत्मा कोइकज थाय छे. विवेकथी तत्त्वने कोइकज शोधे छे. एटले जैन तत्त्वने अन्यदर्शनियां सा माटे जाणता नथी ए खेद के आशंका करवा जेवूज नथी.