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तरबावबोध भाग ६.
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हुँ ए वातनी कंइ श्रद्धा लावी शकुं. एना उत्तरमा में एम कयु के हुं कंइ जैन वचनामृतने यथार्थ तो शुं पण विशेष भेदे करीने पण जाणतो नथी; पण जे सामान्य भावे जाणुं छु एथी पण प्रमाण आपी शकुं खरो. पछी नवतत्त्वविज्ञान संबंधी वातचित नीकळी. में कह्यु: एमां आखी सृष्टिनुं ज्ञान आवी जाय छे, परंतु यथार्थ समजवानी शक्ति जोइए. पछी तेओए ए कथननुं प्रमाण मांग्युं, त्यारे आठ कर्म में कही बताव्यां; तेनी साथे एम सूचव्युं के ए शिवाय एनाथी भिन्न भाव दर्शावे एवं नवमुं कर्म शोधी आपो; पापनी अने पुण्यनी प्रकृतियो कहीने कह्यु. आ शिवाय एक पण वधारे प्रकृति शोधी आपो. एम कहेतां अनुक्रमे वात लीधी. प्रथम जीवना भेद कही पूछ्युं एमां कंइ न्यूनाधिक कहेवा मांगो छो ? अजीवद्रव्यना भेद कही पूछयु. कंइ विशेषता कहो छो ? एम नव तत्त्वसंबंधी वातचित थइ त्यारे तेओए थोडीवार विचार करीने कह्यु: आतो महावीरनी कहेवानी अद्भुत चमत्कृति छे के जीवनो एक नवो भेद मळतो नथी, तेम पापपुण्यादिकनी एक प्रकृति विशेष मळती नथी; अने नवमुं कर्म पण पळतुं नथी. आवां आवां तत्त्वज्ञाननां सिद्धांतो जैनमा छे ए मारुं लक्ष नहोतुं. आमां आखी {ष्टिनुं तत्त्वज्ञान केटलेक अंशे आवी शके खलं.
शिक्षापाठ ८७ तत्वावबोध भाग ६.
एनो उत्तर आ भणीथी एम थयो के हजु आप आटलं कहो छो ते पण जैनना तत्त्वविचारो आपना हृदये आव्या नथी त्यां सुधी; परंतु हुं मध्यस्थताथी सत्य कहुं छं के एमां जे विशुद्धज्ञान बताव्युं छे ते क्यांय नथी; अने सर्व मतोए जे ज्ञान बताव्युं छे