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मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु.
अप्रमाद जोइए. ए नवतत्वज्ञान मने बहु प्रिय छे. एना रसानुभवियो पण मने सदैव प्रिय छे. ___ काळभेदे करीने आ बखते मात्र मति अने श्रुत ए वे ज्ञान भरतक्षेत्रे विद्यमान छे; बाकीनां त्रण ज्ञान व्यवच्छेद छे छतां जेम जेम पूर्णश्रद्धाभावथी । नवतत्वज्ञानना विचारोनी गुफामां उतराय छे, तेम तेम तेना अंदर अद्भुत आत्मप्रकाश, आनंद, समर्थ तत्त्वज्ञाननी स्फूरणा, उत्तम विनोद अने गंभिर चळकाट दिंग करी दइ शुद्ध सम्यक ज्ञाननो ते विचारो वहु उदय करे छे. स्याद्वादवचनामृतना अनंत सुंदर आशय समजवानी शक्ति आ काळमां आ क्षेत्रथी विच्छेद गयेली छतां ते परत्वे जे जे सुंदर आशयो समजाय छे ते ते आशयो अति अति गंभिर तत्त्वथी भरेला छे. पुनः पुनः ते आशयो मनन कराय तो चार्वाकमतिना चंचळ मनुष्यने पण सद्धर्ममा स्थिर करी दे तेवा छ. संक्षेपमा सर्व प्रकारनी सिद्धि, पवित्रता, महाशील, निर्मळ उंडा अने गंभिर विचार, स्वच्छ वैराग्यनी भेट ए तत्त्वज्ञानथी मळे छे.
- - शिक्षापाठ ८६ तत्वावबोध भाग ५,
एकवार एक समर्थ गिद्वान साथे निग्रंथप्रवचननी चमत्कृति संबंधी वातचित थइ; तेना संबंधमां ते विद्वाने जणाव्यु के आटलं हुँ मान्य राखुं छं के महावीर ए एक समर्थ तत्वज्ञानी पुरुष हता; एमणे जे बोध कर्यो छे, से झीली लइ प्रज्ञावंत पुरुषोए अंग उपांगनी योजना करी छे ते ना जे विचारो छे ते चमत्कृति भरेला छे; परंतु ए उपरथी लोकालोकनुं ज्ञान एमां रयुं छे एम हुं कही न शकुं. एम छतां जो तमे भाइ ए संबंधी प्रमाण आपता हो तो