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तत्त्वावबोध भाग २.
वईं; कारण सिद्धांतमा जे जे कयुं छे, ते ते विशेष भेदथी समजवा माटे सहायभूत प्रज्ञावंत आचार्यविरचित ग्रंथो छे. ए गुरुगम्यरुप पण छे. नय, निक्षेपा अने प्रमाणभेद नवतत्वनां ज्ञानमा अवश्यनां छे, अने तेनी यथार्थ समजण ए प्रज्ञावंतोए आपी छे.
शिक्षापाठ ८३ तत्त्वावबोध भाग २.
सर्वज्ञ भगवाने लोकालोकना संपूर्ण भाव जाण्या अने जोया तेनो उपदेश भव्य लोकोने को. भगवाने अनंत ज्ञानवडे करीने लोकालोकनां स्वरुप विषेना अनंत भेद जाण्या हता; परंतु सामान्य मानवियोने उपदेशथी श्रेणिए चढवा मुख्य देखाता नव पदार्थ तेओए दर्शाव्या. एथी लोकालोकना सर्व भावनो एमां समावेश थइ जाय छे. निग्रंथप्रवचननो जे जे सूक्ष्म बोध छे, ते तत्वनी द्रष्टिए नवतत्वमा समाइ जाय छे तेमज सघळा धर्ममतोना सूक्ष्म विचार ए नवतत्व विज्ञानना एक देशमां आवी जाय छे. आत्मानी जे अनंत शक्तियो ढंकाइ रही छे तेने प्रकाशित करवा अहंत भगवाननो पवित्र बोध छे ए अनंत शक्तियो त्यारे प्रफुल्लित थइ शके के ज्यारे नवतत्व विज्ञानमां पारावार ज्ञानी थाय.
सूक्ष्म द्वादशांगी ज्ञान पण ए नवतत्व स्वरुप ज्ञानने सहायरुप छे. भिन्न भिन्न प्रकारे ए नवतत्वस्वरुप ज्ञाननो बोध करे छे एथी आ निःशंक मानवा योग्य छे के नवतत्व जेणे अनंतभाव भेदे जाण्यां ते सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी थयो.
ए नवतत्व त्रिपदीने भावे लेवा योग्य छे. हेय, ज्ञेय अने उपादेय एटले त्याग करवा योग्य, जाणवा योग्य अने ग्रहण करवा योग्य एम त्रण भेद नवतत्व स्वरुपना विचारमा रहेला छे.