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________________ १२४ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. प्रश्नः-जे त्यागवारुप छे तेने जाणीने करवू शुं ? जे गाम न जवं तेनो मार्ग शा माटे पूछवं ? उत्तरः-ए तमारी शंका सहजमां समाधान थइ शके तेवी छे. त्यागवारुप पण जाणवा अवश्य छे. सर्वज्ञ पण सर्व प्रकारना प्रपंचने जाणी रह्या छे. त्याग वारुप वस्तुने जाणवानुं मूळतत्व आ छे के जो ते जाणी न होय तो अत्याज्य गणी कोइ वखत सेवी जवाय; एक गामथी बीजे पहाचतां सुधी वाटमा जे जे गाम आववानां होय तेनो रस्तो पण पृछवो पडे छे नहीं तो ज्यां जवानुं छे त्यां न पहोंची शकाय. " गाम जेम पूछयां पण त्यां वास कया नहीं. तेम पापादिक तत्वो जाणवां पण ग्रहण करवां नहीं. जेम वाटमां आवतां गामनो त्याग कर्यो तेम तेनो पण त्याग करवो अवश्यनो छे. शिक्षापाठ ८४ नत्त्वावबोध भाग ३. नवतत्वनुं काळभेदे जे भत्पुरुषो गुरुगम्यताथी श्रवण, मनन अने निदिध्यासनपूर्वक ज्ञान ले छे, ते सत्पुरुषो महा पुण्यशाली तेमज धन्यवादने पात्र छे. प्रत्येक सुज्ञपुरुषोने मारी विनयभावभूषित एज बोध छे के नवतत्वने स्वबुद्धयानुसार यथार्थ जाणवां. __महावीर भगवंतनां शासनमां बहु मतमतांतर पडी गयां छे, तेनुं मुख्य कारण तत्वज्ञान भणीथी उपास्यक वर्ग- लक्ष गजु ए छे मात्र क्रियाभावपर राचता ह्या; जेनुं परिणाम दृष्टिगोचर छे. अंग्रेजोनी शोधमां आवेली पृश्विनी वस्ति एक अबज अने चाळीश करोडनी गणाई छे तेमां सर्व गच्छनी मळीने जैनप्रजा मात्र वीश लाख छ. ए प्रजा ते श्रमणोपासक छे, एमांथी हुं धारूंछ के नव
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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