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मोक्षमाळा - पुस्तक बीजं•
शिक्षापाठ ८२ तत्त्वावबोध भाग १.
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दश वैकाळिक सूत्रमां कथन ले के जेणे जीवाजीवना भाव नथी जाण्या ते अबुध संयममां स्थिर केम रही शकशे ? ए वचनामृनुं तात्पर्य एम छे के तमे आत्मा, अनात्मानां स्वरुपने जाणो, ए जाणवानी परिपूर्ण अवश्य छे.
आत्मा अनात्मानुं सत्य स्वरुप निग्रंथप्रवचनमांथीज प्राप्त थइ शके छे. अनेक अन्य मतोमां ए वे तत्त्वो विषे विचारो दर्शाव्या छे. पण ते यथार्थ नथी. महा प्रज्ञावंत आचार्योए कलां विवेचन सहित प्रकारांतरे कहेलां मुख्य नवतश्वने विवेकबुद्धिथी जे ज्ञेय करे छे, ते सत्पुरुष आत्मस्वरुपने ओळखी शके छे.
स्यादवादशैली अनुपम, अने अनंत भावभेदथी भरेली छे, ए शैलीने परिपूर्ण तो सर्वज्ञ अने सर्वदर्शीज जाणी शके; छतां एओनां वचनामृतानुसार आगम उपयोगथी यथामति नव तत्त्वनुं स्वरुप जाणवुं अवश्यनुं छे. ए नवतव प्रिय श्रद्धा भावे जाणवाथी परम विवेकबुद्धि, शुद्ध सम्यक्त्व अने प्रभाविक आत्मज्ञाननो उदय थाय छे. नव तमां लोकालोकनुं संपूर्ण स्वरुप आवी जाय छे. जे प्रमाणे जेनी बुद्धिनी गति छ, ते प्रमाणे तेओ तत्त्वज्ञान संबंधी द्रष्टि पहचाडे छे, अने भावानुसार तेओना आत्मानी उज्वळता थाय छे. ते वडे तेओ आत्मज्ञाननो निर्मळ रस अनुभवे छे. जेनुं तत्वज्ञान उत्तम अने सूक्ष्म छे तेमज सुशीलयुक्त जे तत्वज्ञानने सेवे छे ते पुरुष महभागी छे.
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ए नवतत्वनां नाम आगळना शिक्षापाठमां हुं कही गयो छु, एनुं विशेष स्वरूप प्रज्ञावंत आचार्यांना महान् ग्रंथोथी अवश्य मेळ