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________________ ११० मोक्षमाळा - पुस्तक बीजं• स्थूळ द्रष्टांत छे; पण बालविवेकी ए परथी कंइ विचार करी शके एमटेक छे. भीलनुं द्रष्टांत, समजाववा रुपे भाषाभेद फेरफारथी तमने कही बताव्यं. शिक्षापाठ ७४ धर्मध्यान भाग १. भगवाने चार प्रकारनां ध्यान कह्यां छे. आर्च, रौद्र, धर्म अने शुक्ल, पहेलां वे ध्यान त्यागवा योग्य छे. पाछळनां बे ध्यान आत्मसार्थकरूप छे. श्रुतज्ञानना भेद जाणवा माटे, शास्त्र विचारमां कुशळ थवा माटे, निग्रंथप्रवचननुं तत्त्व पामवा माटे, सन्पुरुषोए सेववा योग्य, विचारवा योग्य अने ग्रहण करवा योग्य धर्मध्यानना मुख्य सोळ भेद छे. पहेलां चार भेद कहुं छं. १ आणाविजये ( आज्ञाविचय ). २ आवाया वेजय ( अपायविचय: ३ विवागविजये ( विपाकविचय ). सठांणविजय ( संस्थानविचय ). १ आज्ञाविचय. आज्ञा एटले सर्वज्ञ भगवाने धर्मतत्त्व संबंधी जे जे क छे ते ते सत्य छे; एमां शंका करवा जेवुं नथी; काळनी हीनताथी; उत्तम ज्ञानना विच्छेद जवाथी; बुद्धिनी मंदताथी के एवां अन्य कोई कारणथी मारा समजवामां ते तत्त्व आवतुं नथी. परंतु अर्हत भगवंते अंश मात्र पण माया युक्त के असत्य कहुं नथीज, कारण एओ निरागी, त्यागी, अने निस्पृही हता. मृषा कहेवानुं is कारण एमने हतुं नहीं. नेम एओ सर्वदर्शी होवाथी अज्ञानथी पण मृषा कहे नहीं, ज्यां अज्ञानज नथी, त्यां ए संबंधी मृषा क्यांथी होय ? एवं जे चिंतन करवुं ते ' आज्ञाविषय ' नामनो प्रथम भेद छे. २ अपायविच . राग, द्वेष, काम, क्रोध ए वगेरेथीज जीवने जे दुःख उत्पन्न थाय छे तेथीज तेने भवमां भटक
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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