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________________ ब्रह्मचर्यनी नववाड• मनज सर्वोपाधिनी जन्मदाता भूमिका छे. मनज बंध अने मोक्षनुं कारण छे. मनज सर्व संसारनी मोहिनी रूप छे. ए वश थतां आत्मस्वरुपने पामकुं लेश मात्र दुल्लभ नथी. मनवडे इंद्रियोनी लोलुप्ता छे. भोजन, वाजिंत्र, सुगंधी, स्त्रीनुं निरीक्षण, सुंदर विलेपन ए सघळं मनज मागे छे. ए मोहिनी आडे ते धर्मने संभारवा पण देतुं नथी. संभार्या पछी सावधान थवा देतुं नथी. साबधान थया पछी पतितता करवामां प्रवृत्त थाय छे. मां नथी फावतुं त्यारे सावधानीमां कंइ न्यूनता पहचाडे छे. जेओ ए न्यूनता पण न पामतां अडग रहीने ते मनने जीते छे ते सर्वथा सिद्धिने पामे छे. मन कोइथीज अकस्मात जीती शकाय छे, नहि तो गृहस्थाश्रमे अभ्यास करीने जीताय छे; ए अभ्यास निर्ग्रथतामां बहु थ‍ शके छे छतां सामान्य परिचय करवा मांगिए तो तेनो मुख्य मार्ग आछे के ते जे दुरेच्छा करे तेने भूली जवी तेम करतुं नहि. ते ज्यारे शब्दस्पर्शादि विलास इच्छे त्यारे आपवां नहि. कामां आपणे एथी दोरावुं नहि पण आपणे एने दोरतुं; मोक्षमार्ग चिंतव्यामां रोकj. जितेंद्रियता विना सर्व प्रकारनी उपाधि उभीज रही छे. त्यागे न त्याग्या जेवो थाय छे, लोक लज्जाए तेने सेववो पडे छे. माटे अभ्यासे करीने पण मनने स्वाधीनतामां लई अवश्य आत्महित करं. शिक्षापाठ ६९ ब्रह्मचर्यनी नववाड. ज्ञानीओए थोडा शब्दोमां केवा भेद अने केतुं स्वरुप बतावेल. छे! ए वडे केटली बधी आत्मोन्नति थाय छे ! ब्रह्मचर्य जेवा गंभीर विषयनुं स्वरुप संक्षेपमां अति चमत्कारिक रीते
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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