________________
१००
मोक्षमाळा-पुस्तक बाजु. हुं कोण छं? क्याथी थयो ? शुं स्वरुप छे मारुं खरुं? कोना संबंधे वळगणा छे ? रा के ए परहरूं? एना विचार विवेकपूर क शांत भावे जो कर्याः तो सर्व आत्मिकज्ञानना सिद्धांत तत्व अनुभव्यां.
ते-प्राप्त करवा वचन कोनुं सत्य केवळ मानवू ? निर्दोष नरनुं कथन मानो "तेह" जेणे अनुभव्यु; रे ! आत्म तारो ! आत्म तारो ! शीघ्र एने ओळखो; सर्वात्ममां समद्रष्टि द्या आ वचनने हृदये लखो.
५
शिक्षापाठ ६८ जितेंद्रियता.
ज्यां सुधी जीभ स्वादिष्ट भोजन चाहे छे; ज्यां सुधी नासिका सुगंधी चाहे छे; ज्यां सुधी कान वारांगना आदिनां गायन अने वाजिंत्र चाहे छे; ज्यां सुधी आंख वनोपवन जोवानुं लक्ष राखे छे ज्यां सुधी त्वचा सुगंधीलेपन चाहे छे, त्यांसुधी, ते मनुष्य निरोगी निग्रंथ, निःपरिग्रही, निरा भी अने ब्रह्मचारी थई शकतो नथी. मनने वश करवं ए सर्वोसम छे. एना वडे सघळी इंद्रियो वश करी शकाय छे. मन जीतबुं बहु दुर्घट छे. एक समयमां असंख्यात योजन चालनार अश्व ते मन छे. एने थकावq बहु दुल्लभ छे. एनी गति चपळ अने न झाली शकाय तेवी छे. महा ज्ञानीओए ज्ञानरुपी लगामवडे करीने एने स्थंभित राखी सर्व जय कर्यो छे.
उत्तराध्ययन सूत्रमा नमिराज महर्षिए शकेंद्रप्रत्ये एम कडं के दश लाख सुभटने जीतनार कइक पडया छे; परंतु स्वात्माने जीतनारा बहु दुल्लभ छ भने ते दश लाख सुभटने जीतनार करतां अत्युत्तम छे.