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अमूल्य तत्व विचार.
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जे विवेकीओ आ सुख संबंधी विचार करशे तेओ बहु तत्व अने आत्मश्रेणिनी उत्कृष्टताने पामशे एमां कहेलां अल्पारंभी, निरारंभी अने सर्वमुक्त लक्षणो लक्षपूर्वक मनन करवा जेवां छे. जेम बने ते अल्पारंभी थई सम्भावथी जनसमुदायनां हित भणी वळवं. परोपकार, दया, शांति, क्षमा अने पवित्रतानुं सेवन करं ए बहु सुखदायक छे. निर्ग्रथता विपे तो विशेष कहेवानुं नथी. मुक्तात्मा अनंत सुखमयज छे.
शिक्षापाठ ६७ अमूल्य तत्व विचार
हरिगीत छंद.
बहु पूण्य केरा पुंजी शुभ देह मानवनो मळ्यो, तोये अरे ! भवचक्रनो आंटो नहिं एके टळ्यो; सुख प्राप्त करतां सुख टळे छे लेश ए लक्षे लहो, क्षण क्षण भयंकर भाव मरणे कां अहो राची रहो ?
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लक्ष्मी अने अधिकार वधतां, शुं वध्धुं ते तो कहो, शुं कुटुंब के परिवारथी वधवापणुं, ए नय गृहो; वधवापणुं संसारनुं नर देहने हारी जवो, एनो विचार नहीं अहोहो ! एक पळ तमने हवो !!! २
निर्दोष सुख निर्दोष आनंद, ल्यो गमे त्यांथी मले; ए दिव्य शक्तिमान जेथी जंजिरेथी नीकळे !! परवस्तुमां नहि सुझबो, एनी दया मुजने रही; ए त्यागवा सिद्धांत के पश्चात दुःख ते सुख नहि.
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