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________________ मोक्षमाला - पुस्तक बीजं. जेओए पोतानां उपजीविका जेटलां साधनमात्र अल्पारंभथी राख्यां छे, शुद्ध एक पत्निव्रत, संतोष, परात्मानी रक्षा, यम, नियम, परोपकार, अल्पराग, अल्पद्रव्यमाया अने सत्य तेमज शास्त्राध्ययन राखेल छे, सत्पुरुषोने सेवे छे, निर्ग्रथतानो मनोरथ राख्यो छे, बहु प्रकारे करीने संसारथी जे त्यागी जेवा छे, जेनां वैराग्य अने विवेक उत्कृष्ट छे तेवा पुरूषो पवित्रतामां सुखपूर्वक काळ निर्गमन करे छे. ९८ सर्व प्रकारना आरंभ अने परिग्रहथी जेओ रहित थया छे. द्रव्यथी, क्षेत्रथी, काळथी अने भावथी जेओ अप्रतिबंधपणे विचरे छे, शत्रु, मित्र प्रत्ये समान दृष्टिवाळा अने शुद्ध आत्मध्यानमां जेमनो काळ निर्गमन थाय छे, अथवा स्वाध्याय ध्यानमां लीन छे. जितेंद्रिय अने जित कपाय एवा ते निर्ग्रथो परम सुखी छे. सर्व घनघाती कर्मनो क्षय जेमणे कर्यो छे, चार कर्म पातळां जेनां पड्यां छे, जे मुक्त छे. जे अनंतज्ञानी अने अनंतदर्शि छे ते तो संपूर्ण सुखीज छे. मोक्षमां तेओ अनंत जीवननां अनंत सुखमां सर्व कर्म विरक्तताथी विराजे छे. • आम सत्पुरुषोए कहेलो मत मने मान्य छे पहेलो तो मने त्याज्य छे. बीजो हमणां मान्य छे; अने घणे भागे ए ग्रहण कर - वानो मारो बोध छे. त्रीजो बहु मान्य छे। अने चोथो तो सर्वमान्य अने सच्चिदानंद स्वरूप छे. एम पंडितजी आपनी अने मारी सुख संबंधी वातचित थई. प्रसंगोपात ते वात चर्चता जइशुं. तेपर विचार करीशुं . आ विचारो आपने कह्याथी मने बहु आनंद थयो छे. आप तेवा विचारने अनुकूळ थया एथी वळी आनंदमां वृद्धि थई छे. एम परस्पर वातचित करतां करतां हर्षभर पछी तेओ समाधिभावथी शयन करी गया.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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