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________________ १०२ मोक्षमाळा - पुस्तक बीजं. आप्युं छे. ब्रह्मचर्यरुपी एक सुंदर झाड अने तेने रक्षा करनारी जे नव विधियोतेने वाडनुं रुप आपी आचार पाळवामां विशेष स्मृति रही शके एवी सरळता करी छे. ए नव वाड जेम छे तेम अहीं कही जडं छं. १ वसति - ब्रह्मचारी साधुए स्त्री, पशु के पडंग एथी संयुक्त वसतिमां रहेवुं नहीं. स्त्री वे प्रकारनी छे; - मनुष्यणी अने देवांगना. ए प्रत्येकना पाछा वे वे भेद छे. एकतो मूळ अने वीजी स्त्रीनी मूर्ति के चित्र. एमांथी गमे ते प्रकारनी स्त्री ज्यां होय त्यां ब्रह्मचारी साधुए न रहेवुं, केमके ए विकारहेतु छे. पशु एटले तिर्यंचणी. गाय भैंस इत्यादिक जे स्थळे होय ते स्थळे न रहेवुं; अने पडंग एटले नपुंसक एनो वास होय त्यां पण न रहेवुं. एवा प्रकारनो वास ब्रह्मचर्यनी हानि करे छे. तेओना कामचेष्टा हावभाव इत्यादिक विकारो मनने भ्रष्ट करे छे. २ कथा. - मात्र एकली स्त्रियोनेज के एकज स्त्रीने धर्मोपदेश ब्रह्मचारी न करवो. कथा ए मोहनी उत्पत्ति रुप छे. ब्रह्मचारीए स्त्रीना रुप कामविलास संबंधी ग्रंथो वांचवा नहीं, तेमज जेथी चित्त चळे एवा प्रकारनी गने ते शृंगार संबंधी कथा ब्रह्मचारीए करवी नहीं. ३ आसन. - स्त्रियोनी साथै एक आसने न बेसवुं, तेमज स्त्री बेठी होय त्यां वे घडी सुधीमां ब्रह्मचारीए न बेसवुं. ए स्त्रियोनी स्मृतिनुं कारण छे, एथी विकारनी उत्पत्ति थाय छे. एम भगवाने कं छे. ४ इंद्रियनिरीक्षण - स्त्रीओनां अंगोपांग ब्रह्मचारी साधुए न जोवां, न निरखवां एनां अमुक अंगपर द्रष्टि एकाग्र थवाथी विकारनी उत्पत्ति थाय छे.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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