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________________ मोक्षमाळा- पुस्तक बीजं. शिक्षापाठ ६३ सुख विषे विचार भाग ३. ९२ जे स्थिति हमणां मारी आप जुओ छो तेवी स्थिति लक्ष्मी, कुटुंब अने स्त्री संबंधमां आगळ पण हती. जे वखतथी हुं वात करूं छु, ते वखतने लगभग वीश वर्ष थयां व्यापार, अने वैभवनी बहोळाश ए सघळु वहिवट अवळी पडवाथी घटवा मंडयुं. aurat aarat हुं उपराचापरी खोटना भार वहन करवाथी लक्ष्मी वगरनो मात्र त्रण वर्षमां थइ पड्यो. ज्यां केवळ सवळं धारीने नांख्युं हतुं त्यां अवळु पड्युं. एवामां मारी स्त्री पण गुजरी गइ. ते वखतमां मने कई संतान नहोतुं . जबरी खोटोने लीधे मारे अहींथी नीकळी जनुं पडयुं. मारां कुटुंबीओए थनी रक्षा करी, परंतु ते आभफाट्यानुं थीगडुं हतुं. अन्नने अने दांतने वेर थयानी स्थितिए, हुं बहु आगळ नीकळी पड्यो. ज्यारे हुं त्यांथी नीक यो त्यारे मारां कुटुंबीओ मने रोकी राखवा मंडयां के तें गामनो दरवाजो पण दीठो नथी माटे तने जवा दइ शकाय नहि. तारुं कोमल शरीर कंइ पण करी शके नहि, अने तुं त्यांना अने सुखी था तो पछी आवे पण नहि; माटे ए विचार तारे मांडी वाळवो. घणा प्रकारथी तेओने समजावी, सारी स्थितिमां आवीश त्यारे अवश्य अहीं आवीश. एम वचन दइ जावावंदर हुं पर्यटने नीकळी पडयो. प्रारब्ध पाछां बळवानी तैयारी थइ. दैवयोगे मारीकने एक दमडी पण रही नहोती. एक के वे महीना उदरपोषण चाले तेनुं साधन र नहोतुं छतां जावामां हुं गयो; त्यां मारी बुद्धिए प्रारब्ध खीलव्यां. जे वहाणमां हुं बेठो हतो ते वहाणना नाविके मारी चंचळता अने नम्रता जोइने पोताना शेठ आगळ मारां
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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