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सुख विषे विचार भाग २.
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विप्रः - हुं घेरथी एवो विचार करी नीकळ्यो हतो के बधाथी धारे सुखी कोण छे ते जोवुं, अने तप करीने पछी एना जेवुं सुख संपादन कर. आखा भारत ने तेनां सघळां रमणीय स्थळो जोयां, परंतु कोइ राजाधिराजने त्यां पण मने संपूर्ण सुख जोवामां आव्युं नहि. ज्यां जोयुं त्यां आधि, व्याधि अने उपाधि जोवामां आवी. आप भणी आवतां आपनी प्रशंसा सांभळी एटले हुं अहीं आव्यो अने संतोष पण पाम्यो. आपना जेवी रीद्धि, सत्पुत्र, कमाइ, स्त्री, कुटुंब, घर वगेरे मारा जोवामां क्यांय आव्युं नथी. आप पोते पण धर्मशील, सद्गुणी अने जिनेश्वरना उत्तम उपासक छो. एथी हुं एम मानुं हुं के आपना जेवुं सुख बीजे नथी. भारतमां आप विशेष सुखी छो. उपासना करीने कदापि देवकने याचुं तो आपना जेवी सुखस्थिति याचं.
धनाढ्यः - पंडितजी ! आप एक बहु मर्मभरेला विचारथी नीकळ्या छो, एटले अवश्य आपने जेम छे तेम स्वानुभवी वात कहुं हुं; पछी जेम तमारी इच्छा थाय तेम करजो. मारे त्यां आपे जे जे सुख जोयां ते ते सुख भारतसंबंधमां क्यांय नथी एम आपे कयुं तो तेम हशे, पण खरुं ए मने संभवतुं नथी; मारो सिद्धांत एवो छे के जगत्मां कोइ स्थळे वास्तविक सुख नथी. जगत् दुःखथी करीने दाझतुं छे तमे मने सुखी जुओ छो परंतु वास्तविक रीते हुं सुखी नथी.
विप्रः - आपनुं आ कहेतुं कोइ अनुभवसिद्ध अने मार्मिक हशे . में अनेक शास्त्रो जोयां छे, छतां मर्मपूर्वक विचारो आवा लक्षमां लेवा परिश्रमज लीधो नथी. तेम मने एवो अनुभव सर्वने माटे थइने थयो नथी. हवे आपने शुं दुःख छे ? ते मने कहो.
धनाढ्यः - पंडितजी ! आपनी इच्छा छे तो हुं कहुं छं. ते लक्षपूर्वक मनन करवा जेवुं छे, अने ए उपरथी कंइ रस्तो पामवा जेवुं छे.