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________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजं. होय तो कहो. ब्राह्मणे कयु: हमणा आप क्षमा राखो, आपनो सघळी जातनो वैभव, धाम, बागबगीचा इत्यादि मने देखाडवू पडशे; ए जोया पछी आगमन कारण कहीश. शेठे एजें कंइ मर्मरुप कारण जाणीने कह्युः भले, आनंदपूर्वक आपनी इच्छा प्रमाणे करो. जम्या पछी ब्राह्मणे शेठने पोते साथे आवीने धामादिक बताववा विनंति करी. धनाढ्रं ते मान्य राखी, अने पोते साथे जई वागबगीचा, धाम, वैभव ए सघळु देखाडयु. शेठनी स्त्री अने पुत्रो पण त्यां ब्राह्मणना जोवामां आव्यां. तेओए योग्यतापूर्वक ते ब्राह्मणनो सत्कार कर्यो. एओनां रुप, विनय अने स्वच्छता जोइने तेमज तेओनी मधुरवाणी सांभळीने ब्राह्मण राजी थयो। पछी तेनी दुकाननो वहिवट जायो. तेमां सोएक वहिवटिया त्यां बेठेला जोया. तेओ पण माया छु, विनयी अने नम्र ते ब्राह्मणना जोवामां आव्या. एथी ते बहु संतुष्ट थयो. एनुं मन अहीं कंइक संतोषायु. सुखी तो जगत्मां आज जणाय छे एम तेने लाग्युं. शिक्षापाठ ६२ सुख विषे विचार भाग २. केवां एनां सुंदर घर छे ! केवी सुंदर तेनी स्वच्छता अने जाळवणी छे ! केवी शाणी अने मनोज्ञा तेनी सुशीळ स्त्री छे ! केवा तेना कांतिमान अने कह्यागरा पुत्रो छे ! केवु संपीलं तेनुं कुटुंब छे ! लक्ष्मीनी महेर पण एने त्यां केवी छे ! आखा भारतमा एना जेवो बीजो कोइ सुखी नथी. हवे तप करीने जो हुँ मागुं तो आ महाधनाढ्य जेवुज सघळं भागुं, बीजी चाहना करुं नहीं. दिवस वीती गयो अने गत्रि थइ. सुवानो वखत थयो. धनाढ्य अने ब्राह्मण एकांतम बेठा हता, पछी धनाढ्ये विप्रने आगमन कारण कहेवा विनंति करी.
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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