SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षमाळा-पुस्तक बीजु. नपणुं छे, परंतु ते पण हिंसाए करीने दूषित होवाथी अपूर्ण छ, तेमज सरागीनां वाक्य छे एम स्पष्ट जणाय छे. जे पूर्ण दर्शन विषे अत्रे कहेवानुं छे ते जैन एटले निरागीनां स्थापन करेलां दर्शन विषे छे. एना बोधदाता सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी हता; काळभेद छे तोपण ए वात सिद्धांतिक जणाय छे. दया, ब्रह्मचर्य, शील, विवेक, वैराग्य, ज्ञान, क्रियादि एना जेवां पूर्ण एकेए वर्णव्यां नथी. तेनी साथे शुद्ध आत्मज्ञान, तेनी कोटिओ, जीवनां च्यवन, जन्म, गति, विगति, योनिद्वार, प्रदेश, काळ, तेनां स्वरुप ए विषे एवो सक्ष्म बोध छे के जे वडे तेनी सर्वज्ञतानी निःशंकता थाय. काळभेदे परंपराम्नायथी केवळ ज्ञानादि ज्ञानो जोवामां नथी आवतां, छतां जे जेजिनेश्वरनांरहेलां सिद्धांतिक वचनो छे ते अखंड छे. तेओना केटलाक सिद्धांतो एवा सुक्ष्म छे के जे अकेक विचारतां आखी जींदगी वही जाय. जिनेश्वरनां कहेलां धर्मतत्वथी कोइ पण प्राणीने लेश खेद उत्पन्न थतो नथी. सर्व आत्मानी रक्षा अने सर्वात्मशक्तिनो प्रकाश एमां रह्यो छे. ए भेदो वांचवाथी, समजवाथी, अने ते पर अति अति सूक्ष्म विचार करवाथी आत्मशक्ति प्रकाश पामी जैनदर्शननी सर्वोत्कृष्टपणानीहा कहेवरावे छे. बहु मननथी सर्व धर्ममत जाणी पछी तुलना करनाग्ने आ कथन अवश्य सिद्ध थशे. निर्दोष दर्शननां मूळनत्वो अने सदोष दर्शननां मूळतत्वो विषे बीजे प्रसंगे विस्तारथी कहीशुं. शिक्षापाठ ६१ सुख विषे विचार भाग १. एक ब्राह्मण दरिद्रावस्थाथी बहु पीडातो हतो. तेणे कंटाळीने छेवटे देवर्नु उपासन करी लक्ष्मी मेळववानो निश्चय कर्यो. पोते विद्वान् होवाथी उपासन करवा पहेलां विचार कर्यो के कदापि
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy