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धर्मना मतभेद भाग ३०
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शिक्षापाठ ६० धर्मना मतभेद भाग ३.
जो एक दर्शन पूर्ण अने सत्य न होय तो बीजा धर्म मतने अपूर्ण अने असत्य को प्रमाणथी कही शकाय नहीं; ए माटे थइने जे एक दर्शन पूर्ण अने सत्य छे तेनां तत्वप्रमाणथी बीजा मतोनी अपूर्णता अने एकांतिकता जोइए.
ए बीजा धर्ममतोमा तत्वज्ञान संबंधी यथार्थ सूक्ष्म विचारो नथी. केटलाक जगत्कर्त्तानो बोध करे छे, पण जगत्कर्त्ता प्रमाणवडे सिद्ध थइ शकतो नथी. केटलाक ज्ञानथी मोक्ष छे एम कहे छे ते एकांतिक छे तेमज क्रियाथी मोक्ष ले एम कहेनारा पण एकांतिक छे. ज्ञान, क्रिया ए वनेथी मोक्ष कहेनारा तेना यथार्थ स्वरुपने जाणता नथी अने ए बन्नेना भेद श्रेणिबंध नथी कही शक्या एज एमनी सर्वज्ञतानी खामी जणाइ आवे छे. ए धर्ममतस्थापको सत्देवaani कलां अष्टादश दूपणोथी रहित नहोता एम एओए उपदेशेलां शास्त्रो अथवा तेमना चरित्रोपरथी पण तत्वनी द्रष्टिए जोतां देखाय छे. केटलाक मतोमां हिंसा, अब्रह्मचर्य ई० अपवित्र आचरणनो बोध छे ते तो सहजमां अपूर्ण अने सरागीना स्थापेलां जोवामां आवे छे. कोइए एमां सर्वव्यापक मोक्ष, कोइए कंइ नहीं ए रूप मोक्ष, कोइए साकारमोक्ष अने कोइए अमूक काळसुधी रही पतित थ ए रुप मोक्ष मान्यो छे; पण एमांथी कोइ वात ओनी सप्रमाण थइ शकती नथी. एओना विचारोनुं अपूर्णपण निस्पृह तत्ववेत्ताओए दर्शाव्युं छे ते यथावस्थित जाणवुं योग्य छे.
वेद शीवायना वीजा मतोना प्रवर्त्तकोनां चरित्रो अने विचारो इत्यादिक जाणवाथी ते मतो अपूर्ण छे एम जणाई आवे छे, वर्त्तमानमां जे वेदो छे ते घणा प्राचीन ग्रंथो छे तेथी ते मतनुं प्राची -