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________________ धर्मना मतभेद भाग २. करी, कारण के तो आटला बधा मतभेद केम पडे ? जो कंइ पण मतभेद न होय तो पछी जुदा जुदा पोतपोताना मतो स्थापवा शा माटे यत्न करे? एम अन्योन्यना विरोधथी थोडीवार अटकवु पडे छे. तोपण ते संबंधी अत्रे कंइ समाधान करीशुं. ए समाधान सत्य अने मध्यस्थभावनानी द्रष्टिथी कर्यु छे. एकांतिक के मतांतिक द्रष्टिथी कर्यु नथी. पक्षपाती के अविवेकी नथी, उत्तम अने विचारवा जेतुं छे. देखावे ए सामान्य लागशे, परंतु सूक्ष्म विचारथी बहु भेदवाळु लागशे. शिक्षापाठ ५९ धर्मना मतभेद भाग २. आटलं तो तमारे स्पष्ट मानवु के गमे ते एक धर्म आ लोकपर संपूर्ण सत्यता धरावे छे. हवे एक दर्शनने सत्य कहेतां वाकीना धर्ममतने केवळ असत्य कहेवा पडे, पण हुँ एम कही न शकुं. शुद्ध आत्मज्ञानदाता निश्चयनयवडे तो ते असत्यरुप ठरे, परंतु व्यवहारनये ते असत्य कही शकाय नहीं. एक सत्य अने बाकीना अपूर्ण अने सदोष छे एम कहुं छु. तेमज केटलांक कुतर्कवादी अने नास्तिक छे ते केवळ असत्य छे, परंतु जेओ परलोक संबंधी के पाप संबंधी कंइ पण बोध के भय बतावे छे ते जातना धर्ममतने अपूर्ण अने सदोष कही शकाय छे. एक दर्शन जे निर्दोष अने पूर्ण कहेवानुं छे ते विषेनी वात हमणा एक बाजु राखीए. हवे तमने शंका थशे के सदोष अने अपूर्ण एवं कथन एना प्रवर्तके शा माटे बोध्यु हशे ? तेनुं समाधान थर्बु जोइए. एनुं समाधान एम छे के ते धर्ममतवाळाओनी ज्यांसुधी बुद्धिनी गति पहोंची त्यां सुधी तेमणे विचारो कर्या. अनुमान, तर्क अने उप
SR No.006234
Book TitleBalavbodh Mokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMansukhlal Ravjibhai Mehta
PublisherMansukhlal Ravjibhai Mehta
Publication Year1915
Total Pages188
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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